नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी? मैं आशा करता हु की आप सभी अछे ही होंगे। आज हम आप को रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से बतायेंगे।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay)
नाम | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ |
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जन्म तिथि | 24 सितंबर 1908 |
जन्म स्थान | सिमरिया गांव बिहार |
पिता का नाम | रवि सिंह |
माता का नाम | मनरूप देवी |
धर्म | हिंदू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | खड़ीबोली |
व्यवसाय | लेखक, अध्यापक |
मृत्यु | 24 अप्रैल 1974 |
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म
दिनकर’ जी का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में एक सामान्य किसान ‘रवि सिंह’ तथा उनकी पत्नी ‘मनरूप देवी’ के पुत्र के रूप में हुआ था।
दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनके पिता का देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी विधवा माता ने किया। दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बग़ीचे और कांस के विस्तार थे।
प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, पर शायद इसीलिए वास्तविक जीवन की कठोरताओं का भी अधिक गहरा प्रभाव पड़ा।
रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा
अपनी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में 1 पंडित से लेना प्रारंभ किया इसके बाद की ‘प्राथमिक शिक्षा’ गांव के ‘प्राथमिक विद्यालय’ से ही प्राप्त कर ली। इसके पश्चात उन्होंने बोरो नाम के एक गांव में ‘राष्ट्रीय मीडिया स्कूल’ में प्रवेश लिया।
यह स्कूल सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोध में शुरू किया गया था इसी स्कूल से दिनकर के मनोमस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का अंकुर फूटने लगा था। ‘मोकामाघाट हाई स्कूल’ से इन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण की। (रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा)
इसी दौरान इनका विवाह हो गया तथा यह 1 पुत्र के पिता बन गए। 1928 में इन्होंने अपनी मैट्रिक पूरी की तथा 1932 में पटना विश्वविद्यालय में इतिहास में बीए ऑनर्स पूरा किया इसके अगले ही वर्ष में एक स्कूल के अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गए।
रामधारी सिंह दिनकर का पद तथा कार्यकाल
- बीए ऑनर्स पूरा करने के बाद एक स्कूल में अध्यापक बने।
- बिहार सरकार की सेवा में 1934 – 1947 तक प्रचार विभाग और सब – रजिस्टार के उप निदेशक पद पर कार्यरत रहे।
- 1947 में हिंदी के प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष बनकर मुजफ्फरपुर के बिहार विश्वविद्यालय में आए।
- 1952 में राज्यसभा के सदस्य के रूप में प्रथम संसद में ही चुने गए और दिल्ली पहुंच गए।
- भागलपुर विश्वविद्यालय में 1964 – 1965 ई. तक कुलपति के पद पर कार्यरत रहे।
- भारत सरकार के आदेश से दिल्ली आए तथा 1965 – 1971 ई. तक हिंदी सलाहकार नियुक्त कर दिया।
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ
- रेणुका
- हुंकार
- रसवन्ती
- चक्रवाल
- धूप-छाँह
- कुरुक्षेत्र
- रश्मिरथी
- सामधेनी
- नीलकुसुम
- सीपी और शंख
- उर्वशी
- परशुराम की प्रतीक्षा
- हारे को हरिनाम
- संस्कृति के चार अध्याय
- अर्धनारीश्वर
- रेती के फूल
- उजली आग
रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली
इनके काव्य में सभी रसों का समावेश है पर वीर रस की प्रधानता है। चित्रण भावपूर्ण तथा कविता का एक-एक शब्द आकर्षक होता है।
इनकी रचनाएँ खड़ीबोली में हैं। भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ उर्दू-फारसी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। इन्होंने अधिकतर आधुनिक छन्दों का प्रयोग किया है।
इनकी शैली ओजपूर्ण प्रबन्ध शैली है, जिसके माध्यम से इन्होंने पूँजीवाद के प्रति विरोध तथा राष्ट्रीयता की भावना को व्यक्त किया है।
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अंतिम शब्द
तो दोस्तों आज हमने रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से जाना हैं और मैं आशा करता हु की आप को यह पोस्ट पसंद आया होगा और आप के लिए हेल्पफुल भी होगा।
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