Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay : इस लेख में हम आपको भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जीवन परिचय के बारे में बतायेंगे। इसके साथ ही हम आपको इस लेख में महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) जी से जुड़ी अन्य जानकारियाँ भी जानेंगे। महात्मा गाँधी जी के जीवन के बारे में जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay)
महात्मा गाँधी भारत के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। महात्मा गाँधी का जन्मदिवस हर वर्ष 2 अक्टूबर को गाँधी जयन्ती के रूप में और पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आइये हम इस महात्मा के बारे में और भी जानकारियां साझा करते हैं:-
नाम | मोहनदास करमचंद गांधी |
अन्य नाम | राष्ट्रपिता, बापू, महात्मा, गाँधी जी |
पिता का नाम | करमचंद गांधी |
माता का नाम | पुतलीबाई |
जन्म दिनांक | 2 अक्टूबर, 1869 |
जन्म स्थान | गुजरात के पोरबंदर क्षेत्र में |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | बैरिस्टर |
पत्नि का नाम | कस्तूरबाई माखंजी कपाड़िया [कस्तूरबा गांधी] |
संतान बेटा बेटी का नाम | 4 पुत्र -: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास |
मृत्यु | 30 जनवरी 1948 |
हत्यारे का नाम | नाथूराम गोडसे |
महात्मा गांधी भारत के महानतम व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। यह अपने आप में एक पुस्तकालय की तरह है, जिसके बारे में बहुत कम जाना या पढ़ा जाता है। भारतीय इतिहास और राजनीति के महान नायक महात्मा गांधी के योगदान को देश हमेशा याद रखेगा।
स्वतंत्रता संग्राम में अंत तक खड़े रहने और ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए उनके अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प और कार्यान्वयन से यह देश हमेशा निर्देशित रहेगा। आइए संक्षेप में जानते हैं उस महापुरुष के बारे में जिन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए युद्ध में प्रहरी और मार्गदर्शक की भूमिका निभाई.
महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Mahatma Gandhi)
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को ब्रिटिश भारत में गुजरात राज्य के काठियाड जिले के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतली बाई था। इनके पिता पोरबंदर के दीवान थे। पुतली बाई इनके पिता की चौथी पत्नी थी क्योकि इनसे पहले उनकी तीन पत्नियों की प्रसव के दौरान मृत्यु हो चुकी थी। इनके भाई का नाम लक्ष्मीदास और करसन दास और एक बहन थी जिनका नाम रालियातबेन था।
महात्मा गांधी का वैवाहिक जीवन (Married Life Of Mahatma Gandhi)
मई 1883 में उनकी शादी कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया (कस्तूरबा गांधी) से हुई थी, इससे पहले कि वे 14 साल की उम्र भी पूरी कर पाते। 1884 में, उनके पहले बच्चे का जन्म हुआ, लेकिन वह कुछ ही दिनों तक जीवित रह सकीं। बाद में 1888 में उनके पुत्र हरिलाल का जन्म 1892 में मणिलाल, 1897 में रामदास और 1900 में देवदास हुआ। ये उनके चार पुत्र थे। कस्तूरबा गांधी की मृत्यु 1944 में पूना में हुई थी।
शिक्षा व करियर (Education & Career)
गांधीजी ने हाई स्कूल 1887 में राजकोट से किया और 1889 में बॉम्बे से कानून की पढ़ाई करने इंग्लैंड चले गए और 1891 में बैरिस्टर की डिग्री हासिल की। लौटने के बाद, उन्होंने राजकोट और बॉम्बे में वकालत शुरू की लेकिन सफल नहीं हुए। तब दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय व्यवसायी अब्दुल्ला ने उन्हें मामले की पैरवी करने के लिए आमंत्रित किया और फिर गांधी 1893 में दक्षिण अफ्रीका चले गए।
वहां, वे भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव से दुखी थे और वहीं रह गए और उनके लिए कुछ करने का फैसला किया। यहीं पर उनके साथ भी एक दुखद घटना घटी, जब वे ट्रेन से रिजर्वेशन कराकर दक्षिण अफ्रीका के डबरान से प्रिटोरिया जा रहे थे, तब मैरिट्सबर्ग में एक अंग्रेजी ट्रेन में सवार हुए, एक काले (गांधी) के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। श्रम की बात थी। और स्थानीय पुलिस की मदद से उन्होंने गांधी जी को ट्रेन से नीचे उतारा.
बस इसी घटना ने गांधी जी के हृदय में अंग्रेजों के प्रति क्रांति का बीज बो दिया और यह वही दिन था जब गांधी जी ने अपने मन में निश्चय किया कि अंग्रेज तुम मुझे रेल से ले गए हो, एक दिन मैं तुम्हें अपने देश से बाहर निकाल दूंगा और उन्होंने 14 अगस्त 1947 को ऐसा किया भी। वहीं रहते हुए, उन्होंने 1894 में नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की।
1904 में फीनिक्स हर्मिटेज और 1910 में टॉल्स्टॉय फार्म की स्थापना की। गांधीजी ने यहां 1906 में सत्याग्रह/अवज्ञा आंदोलन का पहला प्रयोग किया। दक्षिण अफ्रीका से उनकी वापसी हुई। 9 जनवरी 1915 को जगह मिली और वह मुंबई के अपोलो बंदरगाह पर उतरे, इस दिन भारत में प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।
महात्मा गाँधी का राजनीतिक जीवन (Political Life Of Mahatma Gandhi)
दक्षिण अफ्रीका से भारत बापसी के बाद ये गोपाल कृष्ण गोखले के संपर्क में आये और उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बना लिया और उन्ही के जरिये ये भारतीय राजनीती में सक्रीय हुए। 1916 ईo में गाँधी जी ने अहमदाबाद के पास साबरमती आश्रम की स्थापना की। अखिल भारतीय राजनीती में इनका पहला साहसिक कदम चम्पारण सत्याग्रह था।
चम्पारण सत्याग्रह (1917)
इस सत्याग्रह के लिए चम्पारण के रामचंद्र शुक्ल ने गाँधी जी को चम्पारण आने के लिए आमंत्रित किया था। चम्पारण सत्याग्रह बिहार के चम्पारण जिले में किसानो पर हो रहे अत्याचारों के विरोध में किया गया था। यहाँ पर किसानो को अपनी जमीन के ३/20 हिस्से पर नील के खेती करना और उसे यूरोपीय मालिकों को एक निर्धारित दाम पर बेचना अनिवार्य कर दिया गया था।
इसे ही तिनकठिया पद्यति भी कहा जाता था। इस सत्याग्रह के बाद सरकार द्वारा एक आयोग गठित किया गया और किसानो की समस्या को सुलझा दिया गया इस तरह इनका पहला सत्याग्रह सफल रहा। एन जी रंगा ने गाँधी जी के इस सत्याग्रह का विरोध किया था। इसी सत्याग्रह के दौरान रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इन्हे ‘माहात्मा’ की उपाधि दी।
अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918)
चम्पारण की सफलता के बाद इनका अगला कदम अहमदाबाद की एक कॉटन टेक्सटाइल मिल और उसके मजदूरों के बीच मजदूरी बढ़ाने को लेकर हुए विवाद में हस्तक्षेप करना था। विवाद का कारण प्लेग बोनस था जिसे मिल मालिक प्लेग के ख़त्म होने के बाद ख़त्म करना चाहते थे लेकिन मजदुर प्रथम विश्व युद्ध के कारण बढ़ी महंगाई के मद्देनजर इस बोनस को जारी रखने की मांग कर रहे थे। अंत में आंदोलन के बाद मजदूरों की माँगो को स्वीकार कर लिया गया और 35% बोनस देने की माँग मान ली।
खेड़ा सत्याग्रह (1918)
गुजरात के खेड़ा जिले में किसानो की फसल नष्ट हो जाने के बाबजूद भी किसानो से लगान बसूला जा रहा था जिससे किसानो की दशा बहुत ख़राब हो गयी थी अतः गाँधी जी और विट्ठल भाई पटेल ने यहाँ आंदोलन किया और सरकार ने यह घोषणा कर दी की जो किसान लगान दे सकते है उन्ही से लगान बसूला जाये और इस तरह यह आंदोलन समाप्त हो गया।
खिलाफत आंदोलन (1919-22)
यह आंदोलन खलीफा की सत्ता की पुनर्स्थापना के लिए चलाया गया था। दरअसल हुआ ये था कि प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय मुसलमानो ने अंग्रेजो की सहायता इस शर्त पर की थी कि वे इनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और उनके धार्मिक स्थलों की रक्षा करेंगे परन्तु युद्ध समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार अपने वाडे से मुकर गयी और ब्रिटेन व तुर्की के बीच हुयी ‘सेवर्स की संधि’ के तहत तुर्की के सुल्तान के सारे अधिकार छीन लिए गए।
उस समय इस्लाम जगत में तुर्की के सुल्तान का बहुत सम्मान था वे सब उन्हें अपना खलीफा मानते थे परन्तु ब्रिटिश सरकार के इस कारनामे के बाद वे सब सरकार से नफरत करने लगे। लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुए कलकत्ता अधिवेशन (सितंबर 1920) में खिलाफत आंदोलन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।
इस आंदोलन का सर्वाधिक विरोध चितरंजन दास ने किया था। कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं जैसे – जिन्ना, एनी बेसेंट और बिपिन चंद्र पाल ने भी इसका विरोध किया और कांग्रेस छोड़ दी। 1924 में यह आंदोलन उस वक्त समाप्त हो गया जब तुर्की में कमाल पाशा के नेतृत्व में सरकार बनी और खलीफा के पद को समाप्त कर दिया गया।
असहयोग आंदोलन (1920-22) –
गाँधी जी ने यह आंदोलन 1 अगस्त 1920 को प्रारम्भ किया। दिसंबर 1920 के कांग्रेज के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया। इस आंदोलन के खर्च हेतु 1921 ईo में तिलक स्वराज फण्ड की स्थापना की गयी जिसमे ६ माह के भीतर ही 1 करोड़ रूपये जमा हो गए।
इस आंदोलन में एक नई चीज सामने आयी कि इस बार वैधानिक साधनो के अंतर्गत स्वराज्य प्राप्ति की विचारधारा को त्याग दिया गया और इसके स्थान पर सरकार के सक्रिय विरोध की बात सामने आयी।इस आंदोलन के तहत गांधीजी ने अपनी कैसर-ए-हिंद की उपाधि त्याग दी साथ ही जमनालाल बजाज ने ‘राय बहादुर’ की। इस आंदोलन के दौरान बहुत से वकीलों ने अपनी वकालत त्याग दी। इस आंदोलन की सफलता के लिए गाँधी जी ने कुछ नियम अपनाने को कहा जो की निम्न है –
इसी आंदोलन के दौरान काशी विद्यापीठ और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना हुयी। 1021 में लॉर्ड रीडिंग वायसराय बनकर भारत आये और दमन चक्र प्रारम्भ हुआ नेताओं की गिरफ़्तारी होने लगी जिसमे सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले प्रमुख नेता मुहम्मद अली थे।
नवंबर 1921 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर काले झंडे दिखाए गए जिससे सर्कार क्रुद्ध हो गयी और कठोर दमन चक्र प्रारम्भ कर दिया जिससे आंदोलन और गरमा गया। 5 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रान्त के गोरखपुर जिले के चौरा-चौरी में किसानो के जुलुस पर प्रशासन ने गोली चलवा दी जिससे क्रुद्ध भीड़ ने तीन फूंक दिया जिसमे एक थानेदार सहित 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गयी। इस घटना से क्षुब्ध होकर गाँधी जी ने 12 फरवरी को बारदोली में कांग्रेस समिति की बैठक बुलाई जिसमे असहयोग आंदोलन के स्थगन की घोषणा कर दी।
इसके बाद सरकार ने 22 मार्च को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया और 6 साल की सजा सुनाई गयी परन्तु बाद में इन्हे आपरेश (आंतो के आपरेशन के लिए) कराने के लिए 2 साल बाद ही 5 फरवरी 1924 को रिहा कर दिया गया (इन दो सालो में ही कांग्रेस दो गुटों चितरंजन दास व मोतीलाल ग्रुप और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी व पटेल ग्रुप में बँट गयी)।
महात्मा गाँधी की मृत्यु (Death Of Mahatma Gandhi)
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की हत्या 30 जनवरी 1948 को बिड़ला भवन में हिन्दू महासभा से सम्बंधित एक हिन्दू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे नामक ने कर दी। इनकी शवयात्रा 8 किलो मीटर लम्बी थी। बाद में गोडसे को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया और 15 नवम्बर 1949 को फाँसी दे दी गयी। महात्मा गाँधी की समाधि राजघाट (नई दिल्ली) में स्थित है।
मैं उम्मीद करता हूँ कि अब आप लोगों को महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay) से जुड़ी सभी जानकरियों के बारें में भी पता चल गया होगा। यह लेख आप लोगों को कैसा लगा हमें कमेंट्स बॉक्स में कमेंट्स लिखकर जरूर बतायें। साथ ही इस लेख को दूसरों को जरूर share करें जो लोग महात्मा गांधी के बारे में जानना चाहते हैं। धन्यवाद!
bahut achchi jankari hai, i like so much