अकबर और बीरबल की कहानी | Akbar Birbal Ki Kahani

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नमस्कार दोस्तों! अकबर और बीरबल की कहानी (Akbar Birbal Ki Kahani) तो हम सभी ने अपने बचपन में खूब पढ़ी व सुनी है। अकबर जैसे रजा और बीरबल जैसे मुख्य मंत्री की जोड़ी का तो कोई मुकाबला ही नहीं हो सकता है।

आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ उन्ही कहानियों में से एक बहुत ही मजेदार अकबर बीरबल की छोटी कहानी, जिसे पढ़ कर आपको बीरबल की चतुराई के बारे में और गहराई से जानने को मिलेगे।

तो चलिए शुरू करते हैं।

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अकबर और बीरबल की कहानी | Akbar Birbal Ki Kahani

अकबर और बीरबल की कहानी | Akbar Birbal Ki Kahani
अकबर और बीरबल की कहानी | Akbar Birbal Ki Kahani

मुगल बादशाह अकबर के दरबार में नौ मुख्य मंत्री थे, जिन्हें वे नवरत्न कहकर बुलाते थे। ये सारे मंत्री अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता रखते थे। इन्हीं नवरत्नों में एक मंत्री बीरबल भी थे।

अकबर बीरबल को बहुत चाहते थे। बीरबल भी विद्वान और हाज़िरजवाब थे। एक दिन भी बीरबल की अनुपस्थिति अकबर को बहुत खलती थी।

एक दिन की बात है, एक राजकर्मचारी दरबार में देर से आया, तो अकबर ने उससे देरी से आने का कारण पूछा, उसने कहा, “महाराज! मेरा बेटा कुछ जिद कर रहा था, जिससे मुझे आने में देर हो गई। मेरा अपराध क्षमा करें।”

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उसकी बात सुन अकबर को बहुत क्रोध आया। वे बोले, “हम तुम्हें नौकरी से निकालकते हैं, भला, बच्चे की जिद भी देरी से आने का कोई कारण है?” बेचारा कर्मचारी बहुत रोया-गिड़गिड़ाया कि उसके बच्चे भूखे मर जाएँगे पर बादशाह अकबर अपनी बात पर अड़े रहे।

बीरबल को यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने भी बादशाह से उस राजकर्मचारी को माफ करने की विनती की किंतु अकबर नहीं माने।

उन्होंने बीरबल से कहा कि अगर तुम कहते हो कि बाल-हठ के आगे कोई जीत नहीं सकता तो मेरे सामने यह सिद्ध करके दिखाओ। आखिर मैं भी देखना चाहता हूँ कि किसी बच्चे की जिद इतनी बड़ी कैसे हो सकती है कि उसके आगे बड़े बड़े को झुकना पड़े।

बीरबल बोले, “ठीक है महाराज, अगर मैंने यह सिद्ध कर दिया तो आप इस कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकालेंगे।”

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अकबर इसके लिए तैयार हो गए। बीरबल बोले, “अच्छा आप पिता बन जाइए और मैं बच्चा बन जाता हूँ फिर देखते हैं कि किसको झुकना पड़ता है।’

बीरबल बच्चा बनकर कई प्रकार की शरारतें करने लगा। बादशाह अकबर को इन बातों में मज़ा आने लगा। बीरबल स्वयं बच्चे का अभिनय करते हुए बोला कि, “मैं एक मिट्टी का लोटा लूँगा।” राजा का संकेत मिलते ही मिट्टी का लोटा आ गया।

किंतु बीरबल की हठ यहीं समाप्त न हुई। वह रोने का नाटक करते हुए बोले कि “मैं तो अब हाथी लूँगा।” बादशाह ने पलभर में हाथी भी मँगवा दिया।

किंतु बीरबल थे अब भी रोए जा रहे थे। अब अकबर थोड़ा झुंझलाए और बोले, “अब क्या हुआ?” बीरबल मचलते हुए बोले, “लोटे में हाथी डाल दो।”

क्या? हाथी लोटे में,” अकबर ने हैरानी से पूछा। “हाँ, हाथी को लोटे में डालो, बीरबल ने दृढ़ता से कहा।

अब तो बादशाह अकबर चकरा गए और उन्होंने अपनी हार स्वीकार करते हुए कहा, अच्छा बीरबल हम हार गए। हम इस कर्मचारी को फिर से नौकरी पर रखते हैं। यह सुनकर सभी प्रसन्न हो गए और कर्मचारी ने राहत की साँस ली।

अंतिम शब्द

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