नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी? मैं आशा करता हूँ कि आप सभी अच्छे ही होंगे। आज हम आप को मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय (Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan Parichay) के बारे में विस्तार से बतायेंगे।
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय (Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan Parichay)
नाम (Name) | मैथिलीशरण गुप्त |
जन्म (Date of Birth) | 03/08/1886 |
आयु | 78 वर्ष |
जन्म स्थान (Birth Place) | झाँसी, उत्तरप्रदेश |
पिता का नाम (Father Name) | रामचरण गुप्त |
माता का नाम (Mother Name) | कशीवाई |
पत्नी का नाम (Wife Name) | ज्ञात नहीं |
पेशा (Occupation ) | लेखक, कवि |
भाषा शैली | ब्रजभाषा |
मृत्यु (Death) | 12/12/1964 ई. |
मृत्यु स्थान (Death Place) | —- |
अवार्ड (Award) | विशिष्ट सेवा पदक |
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म और प्रारंभिक जीवन
हिंदी साहित्य के प्रखर नक्षत्र, माँ भारती के वरद पुत्र मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त सन् 1886 ई. में पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता कौशल्या बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झाँसी के पास चिरगाँव में हुआ। माता और पिता दोनों ही परम वैष्णव थे। वे कनकलताद्ध’ नाम से कविता करते थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गई। घर में ही हिंदी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी प्रेमचंद्र जी ने उनका मार्गदर्शन किया।
12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कविता रचना आरंभ की। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में भी आए। उनकी कविताएँ खड़ीबोली में मासिक ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होना प्रारंभ हो गई। प्रथम काव्य संग्रह ‘रंग में भंग’ तथा बाद में जयद्रथ वध’ प्रकाशित हई। उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रंथ ‘मेघनाद वध’,’ब्रजांगना’ का अनुवाद भी किया।
सन् 1914 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत ‘भारत भारती’ का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘स्वप्नवासवदत्ता’ का अनुवाद प्रकाशित कराया। सन् 1916-17 ई.में महाकाव्य ‘साकेत’ का लेखन प्रारंभ किया। उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव इस ग्रंथ में दूर किए गए। स्वत: प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें छापना शुरू किया। ‘साकेत’ तथा अन्य ग्रंथ ‘पंचवटी’ आदि सन् 1931 में पूर्ण किए।
मैथिलीशरण गुप्त साहित्यिक परिचय
मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट – कूट कर भरे थे. इसी कारण उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत – प्रोत हैं. राष्ट्र कवि गुप्त जी की प्रारभिक शिक्षा इनके अपने गाँव में ही संपन्न हुईं. इन्होंने मात्र 9 वर्ष की आयु में शिक्षा छोड़ दी थी. इसके उपरांत इन्होने स्वाध्याय द्वारा अनेक भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया था.
गुप्त जी का मार्गदर्शन मुंशी अजमेरी जी से हुआ और 12 वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में ‘कनकलता’ नाम से पहली कविता लिखना आरंभ किया था. महादेवी वर्मा जी के संपर्क में आने से उनकी कवितायेँ खाड़ी बोली सरस्वती में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गया था. प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग” तथा बाद में “जयद्रथ वध” प्रकाशित हुई.
उन्होंने बंगाली भाषा के काव्य ग्रन्थ में ‘मेघनाथ बध’ अथवा ‘’ब्रजांगना’’ का भी अनुवाद किया था. 1912 व 1913 में राष्ट्रीयता की भावनाओं से परिपूर्ण ‘’भारत भारती’’ काव्य ग्रन्थ भी प्रकाशित हुआ था. इसमें गुप्त जी ने स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान में देश की दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का सम्पूर्ण प्रयोग किया था. संस्कृत भाषा का प्रमुख काव्य ग्रन्थ “स्वप्नवासवदत्ता”, महाकाव्य साकेत, उर्मिला आदि काव्य भी प्रकाशित हुए.
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ
- भारत भारती – इसमें देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाओं पर आधारित कविताएँ लिखी हुई है। इसी से वे राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए।
- साकेत – ‘मानस’ के पश्चात हिंदी में राम काव्य का दूसरा अनुपम ग्रंथ ‘साकेत’ ही है।
- यशोधरा – इसमें उपेक्षित यशोधरा के चरित्र को काव्य का आधार बनाया गया है।
- द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया – इनमें हिडिंबा, नहुष, दुर्योधन आदि के चरित्रों को नवीन रूपों में प्रस्तुत किया गया है।
- गुप्त जी की अन्य पुस्तकें – पंचवटी, चंद्रहास, कुणालगीत, सिद्धराज, मंगल घट, अनघ तथा मेघनाद वध।
मैथिलीशरण गुप्त की भाषा-शैली
गुप्त जी ने अपनी कविताओं में ब्रजभाषा तथा परिष्कृत, सरल तथा शुद्ध खड़ीबोली को अपनाया, उन्होंने यह सिद्ध किया कि ब्रजभाषा काव्य सृजन के लिए समर्थ भाषा है। सभी अलंकारी का इन्होंने स्वाभाविक प्रयोग किया है। लेकिन सादृश्यमूलक अलंकार गुप्त जी को अधिक प्रिय है।
घनाक्षरी, मालिनी, वसंततिलका, हरिगीतिका व द्रुतविलंबित आदि छंदों में उन्होंने काव्य रचना की है। गुप्त जी ने विविध शैलियों में काव्य की रचना की। इसके द्वारा प्रयुक्त शैलियाँ है – प्रबंधात्मक शैली, अलंकृत उपदेशात्मक शैली, विवरणात्मक शैली, गीति शैली तथा नाट्यशैली। मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाएँ राष्ट्रीय भावनाओं से परिपूर्ण है।
काव्य के क्षेत्र में उन्होंने अपनी लेखनी से संपूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी। राष्ट्रप्रेम की इस अजस्त्र धारा का प्रवाह बुंदेलखंड क्षेत्र से कविता के माध्यम से हो रहा था। बाद में राष्ट्र प्रेम को इस धारा को देशभर में प्रवाहित किया था, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने।
मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु
मैथिलीशरण गुप्त जी पर गांधी जी का भी गहरा प्रभाव पड़ा था इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया और कारावास की यात्रा भी की थी. यह एक सच्चे राष्ट्र कवि भी थे. इनके काव्य हिंदी साहित्य की अमूल निधी माने जाते हैं. महान ग्रन्थ ‘भारत भारती’ में उन्होंने भारतीय लोगों की जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जगाई है.
अंतिम काल तक राष्ट्र सेवा में अथवा काव्य साधना में लीन रहने वाले और राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी 12 दिसम्बर सन 1964 ई. को अपने राष्ट्र को अलविदा कह गए.
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अंतिम शब्द
तो दोस्तों आज हमने मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय (Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan Parichay) के बारे में विस्तार से जाना हैं और मैं आशा करता हूँ कि आप को यह पोस्ट पसंद आया होगा और आप के लिए हेल्पफुल भी होगा।
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