नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी? मैं आशा करता हूँ कि आप सभी अछे ही होंगे। आज हम आप को आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Aryabhatt Ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से बतायेंगे।
आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Aryabhatt Ka Jivan Parichay)
नाम (Name) | आर्यभट्ट |
जन्म (Birth) | दिसंबर, ई.स.476 |
मृत्यु (Death) | दिसंबर, ई.स. 550 [74 वर्ष ] |
जन्म स्थान (Birth Place) | अश्मक, महाराष्ट्र, भारत |
कार्यक्षेत्र (Profession) | गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री |
कार्यस्थल (Work Place) | नालंदा विश्वविद्यालय |
रचनायें (Compositions) | आर्यभटीय, आर्यभट्ट सिद्धांत |
योगदान (Contribution) | पाई एवं शून्य की खोज |
आर्यभट का जन्म
आर्यभट के जन्म के संबंध में कोई ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नही हैं, परन्तु कहा जाता हैं कि भगवान बुद्ध के समय अश्मक देश के कुछ लोग मध्य भारत में नर्मदा नदी और गोदावरी नदी के बीच बस गये . ऐसा माना जाता हैं कि आर्यभट का जन्म भी ई.स. 476 में इसी स्थान पर हुआ था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार आर्यभट का जन्म बिहार में पटना में हुआ था, जिसका प्राचीन नाम पाटलीपुत्र था , जिसके समीप स्थित कुसुमपुर में उनका जन्म माना जाता हैं।
आर्यभट की शिक्षा
जैसे उनके जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों में एक मत नहीं है। उसी तरह उनकी शिक्षा को लेकर भी विद्वानों में मतांतर है। कहा जाता है की आर्यभट्ट शिक्षा प्राप्ति के लिए पाटलिपुत्र गये।
आर्यभट्ट ने अपनी शिक्षा मगध साम्राज्य के प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उस बक्त बिहार का यह विश्वविध्यालय विश्व प्रसिद्ध शिक्षा का केंद्र था।
उस बक्त नालंदा विश्वविद्यालय की गिनती विश्व के सबसे बड़े शिक्षा केन्द्रों में की जाती थी। यहीं से ज्ञान प्राप्त कर आर्यभट्ट प्रख्यात गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और ज्योतिषशास्त्री बने। आर्यभट्ट गुप्त साम्राज्य के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहते थे।
आर्यभट्ट की रचनाएं (ग्रंथ)
आर्यभट्ट ने कई ग्रंथों की रचना की लेकिन वर्तमान समय में उनकी चार पुस्तकें ही मौजूद हैं. जिनके नाम – आर्यभटीय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत हैं. आर्यभट्ट 3\-0 सिद्धांत ग्रन्थ पूरा नहीं हैं इस किताब के सिर्फ 34 श्लोक की उपलब्ध हैं. इनकी बहुत सी रचनाएँ विलुप्त हो चुकी हैं.
आर्यभट्ट इनका सबसे प्रमुख और लोकप्रिय ग्रन्थ हैं. एक अन्य भारतीय गणितज्ञ भास्कर ने अपने लेखों में इस ग्रन्थ को आर्यभटीय लिखा हैं. इनके कार्यों का वर्णन इस ग्रन्थ में मिलता हैं. इस ग्रन्थ में अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति का विस्तृत वर्णन किया गया हैं.
आर्यभटीय ग्रन्थ में कुल 121 श्लोक हैं. प्रत्येक श्लोक की पंक्ति बहुत ही सार गर्भित हैं. जिन्हें अलग-अलग विषयों के आधार पर चार भागों में विभक्त किया गया हैं. जो कि इस प्रकार हैं.
गीतिकापद (13 श्लोक)
आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में सूर्य, चन्द्रमा समेत पहले पांच ग्रहो, हिंदु कालगणना और त्रिकोणमिती जैसे विषयों की व्याख्या की गई हैं.
गणितपद (33 श्लोक)
आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित पर संक्षिप्त जानकारी दी गयी हैं.
कालक्रियापद (25 श्लोक)
आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में हिंदुकाल गणना समेत ग्रहो और ज्योतिष की गतियों पर जानकारी दी गई है
गोलपद (50 श्लोक)
आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में स्पेस साइंस, ग्रहों की गतियों, सूर्य से दूरी, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी हैं.
आर्यभट्ट सिद्धांत
आर्यभट्ट की इस रचना में निम्नलिखित खगोलीय यंत्रो और उपकारणों का उल्लेख मिलता हैं.
- शंकु यन्त्र (Gnomon)
- छाया यन्त्र (Shadow Instrument)
- बेलनाकार यस्ती यन्त्र (Cylindrical Stick)
- छत्र यन्त्र (Umbrella Shaped Device)
- जल घडी (Water Clock)
- कोण मापी उपकरण (Angle Measuring Device)
- धनुर यंत्र / चक्र यंत्र (Semi Circular/Circular Instrument)
आर्यभट्ट का गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में योगदान
पाई की खोज (Pi Invention)
आर्यभट्ट ने पाई का मान दशमलव के चार अंकों तक बताया. इस खोज का वर्णन करते हुए आर्यभट्ट ने अपनी किताब गणितपाद में लिखा हैं कि सौ में चार जोड़ें, फिर आठ से गुणा करें और फिर 62,000 जोड़ें और 20,000 से भागफल निकालें, इससे प्राप्त उत्तर पाई का मान होगा.
[ ( 4 + 100) * 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832
62,832/ 20,000 = 3.1416
पृथ्वी की परिधि (Earth Circumference)
आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि की लम्बाई की गणना की. जो उन्होंने लंबाई 39,968.05 किलोमीटर बताई थी जो असल लंबाई (40,075.01 किलोमीटर) से सिर्फ 0.2 प्रतीशत कम है. आधुनिक विज्ञान के लिए आज भी यह आश्चर्य का विषय हैं कि उस समय इस तरह की गणना किस प्रकार संभव हैं.
शून्य की खोज (Zero Invention)
आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार किया. उन्होंने अपने ग्रन्थ में एक श्लोक लिखा है कि-
एकं च दश च शतं च सहस्रं तु अयुतनियुते तथा प्रयुतम्.
कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात्स्थानं दशगुणं स्यात् ॥ २ ॥
अर्थात “एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, कोटि, अर्बुद तथा बृन्द में प्रत्येक पिछले स्थान वाले से अगले स्थान वाला दस गुना है. अन्य शब्दों में कहे तो किसी संख्या के आगे शुन्य लगाते ही उसका मान 10 गुना बढ़ जाता हैं.’
त्रिकोणमिति (Aryabhatta Contribution in Trigonometry)
आर्यभट्ट का त्रिकोणमिति के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं. इन्होने अपने ग्रन्थ आर्य सिद्धांत में ज्या (sin), कोज्या (cosine), उत्क्रम ज्या (versine) तथा व्युज्या (inverse sine) की परिभाषा की, जिससे त्रिकोणमिति का जन्म हुआ. आर्यभट्ट ने सबसे पहले ज्या (sin) और वर्साइन (versine) (1 − cos x) की सारणी (table) 3.75° के अन्तराल पर 0° से 90°तक के कोण के लिए बनाई.
बीजगणित (Aryabhatta Contribution in Algebra)
आर्यभट्ट ने वर्गों एवं घनो की श्रृंखला के जोड़ (sum of the series of cube and square upto n numbers) के सूत्र का भी आविष्कार किया.
12 + 22 + …………. + n2 =[ n ( n+1) ( 2n + 1) ] / 6
&
13 + 23+ ………….. + n3 = ( 1+2 + ……….. + n )2
खगोल विज्ञान
आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं. आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर रूप से घुमती हैं. जिसके कारण आकाश में तारो की स्थिति में परिवर्तन होता हैं.
गोलपाद में स्पेस साइंस की बहुत महत्वपूर्ण जानकारी की व्याख्या की गई हैं. आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथो में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के वैज्ञानिक कारणों को बताया हैं. उन्होंने यह भी लिखा हैं कि चंद्रमा और अन्य ग्रह के पास अपना स्वयं का प्रकाश नहीं होता हैं. वे सूर्य के परावर्तित प्रकाश से प्रकाशमान होते हैं.
आर्यभट्ट ने यह भी बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करने में 23 घंटें, 56 मिनिट और 1 सेकेण्ड का समय लेती हैं और एक साल ने 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनिट और 30 सेकेंड होते हैं.
आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि (circumference) की लंबाई 39,968.05 किलोमीटर बताई थी जो वास्तविक लंबाई (40,075.01 किलोमीटर) से सिर्फ 0.2 प्रतिशत कम हैं. आर्यभट्ट ने सूर्य से ग्रहों की दूरी की गणना की थी. उनके द्वारा की गणना आज के आधुनिक विज्ञान के द्वारा की गणना के समकक्ष हैं. सूर्य से पृथ्वी की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर हैं. जिसे 1 AU ( Astronomical unit) भी कहा जाता हैं.
ग्रह | आर्यभट्ट का मान | वर्तमान मान |
---|---|---|
बुध | 0.375 AU | 0.387 AU |
शुक्र | 0.725 AU | 0.723 AU |
मंगल | 1.538 AU | 1.523 AU |
गुरु | 4.16 AU | 4.20 AU |
शनि | 9.41 AU | 9.54 AU |
आर्यभट्ट ने यह भी बताया कि सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित हैं. पृथ्वी और अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं.
आर्यभट्ट उपग्रह और वैज्ञानिक संस्थान (Aryabhatta Satellite and Institutes)
भारत सरकार द्वारा अपना पहला उपग्रह 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में छोड़ा गया था जिसका नाम आर्यभट्ट रखा था. वर्ष 1976 में अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को के द्वारा आर्यभट्ट की 1500वीं जयंती का आयोजन किया गया था.
इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (ISRO) द्वारा वायुमंडल के संताप मंडल में जीवाणुओं की खोज की थी. जिनमे से एक प्रजाति का नाम बैसिलस आर्यभट्ट रखा गया हैं. भारत के नैनीताल में एक वैज्ञानिक संस्थान का नाम ‘आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान’ रखा गया है.
आर्यभट्ट की मृत्यु (Aryabhatta Death)
आर्यभट्ट की मृत्यु कब और कहाँ हुई इसको लेकर भी विद्वान एक मत नहीं हैं। लेकिन कुछ विद्वान के अनुसार उनकी मृत्यु 550 ईस्वी में हुआ था।
कहा जाता है की कभी-कभी भारत की धरती ऐसे महान सपूतों को जन्म देती है जो अपने कार्यों के द्वारा एक अमीट छाप छोड़ देते हैं। आर्यभट्ट भारत की धरती पर जन्मे ऐसे ही महान सपूत थे जिन्होंने अपने कार्यों से भारतवर्ष को गौरान्वित किया।
अन्य रोचक तथ्य
- आर्यभट द्वारा रचित आर्यभटिय का उपयोग आज भी हिन्दू पंचांग हेतु किया जाता हैं.
- गणित और खगोलशास्त्र में उनके अतुलनीय योगदान को देखते हुए भारत के प्रथम उपग्रह का नाम उन्ही के नाम पर ‘ आर्यभट ’ रखा गया.
- आर्यभट ने दशमलव प्रणाली का निर्माण किया.
- आर्यभट ने सूर्य सिद्धांत की भी रचना की.
- 23 वर्ष कि आयु में आर्यभट ने ‘ आर्यभटिय ग्रन्थ ’ की रचना की, जिसकी उपयोगिता एवम् सफलता को देखते हुए तत्कालीन राजा बुद्धगुप्त ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया.
- आर्यभट ने बिहार के तरेगाना क्षेत्र में सूर्य मंदिर में एक निरिक्षण शाला की स्थापना की.
- विद्वानों के अनुसार अरबी रचनायें ‘ अल – नत्फ़ ’ और ‘ अल – नन्फ ’ आर्यभट के कार्यों का ही अनुवाद हैं.
- आर्यभट ने अंकों को दर्शाने के लिए कभी भी ब्राह्मी लिपि का उपयोग नहीं किया, जो कि वैदिक समय से सांस्कृतिक प्रथा के अनुसार चले आ रहे थे. उन्होंने सदैव Alphabets ही प्रयोग किये.
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अंतिम शब्द
तो दोस्तों आज हमने आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Aryabhatt Ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से जाना हैं और मैं आशा करता हूँ कि आप को यह पोस्ट पसंद आया होगा और आप के लिए हेल्पफुल भी होगा।
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