मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय – हिंदी सबसे खूबसूरत भाषाओं में से एक है। हिंदी एक ऐसा विषय है जिसे हर कोई अपना लेता है, यानी आसान के लिए बहुत आसान और कठिन के लिए बहुत कठिन हो जाता है। हिन्दी को एक नया रूप दिया जाने वाला था, हर दिन एक नई पहचान, इसके लेखक इसके लेखक थे।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi

उनमें मुंशी प्रेमचंद की एक महान छवि थी, वे ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने हिंदी विषय की दिशा ही बदल दी। वे एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने समय के साथ बदलते हुए हिंदी साहित्य को आधुनिक रूप दिया। मुंशी प्रेमचंद ने सरल सहज हिंदी को ऐसा साहित्य प्रदान किया, जिसे लोग कभी नहीं भूल सकते।

अत्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए उन्होंने हिन्दी जैसे सुन्दर विषय में अपनी अमिट छाप छोड़ी। मुंशी प्रेमचंद न केवल हिंदी के लेखक थे, बल्कि एक महान साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म सन् 1880 में वाराणसी जिले के लमही ग्राम में हुआ था। उनका बचपन का नाम धनपत राय था, किन्तु वे अपनी कहानियाँ उर्दू में ‘नवाबराय‘ के नाम से लिखते थे और हिन्दी में मुंशी प्रेमचंद के नाम से।

गरीब परिवार में जन्म लेने तथा अल्पायु में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनका बचपन अत्यधिक कष्टमय रहा। किन्तु जिस साहस और परिश्रम से उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा, वह साधनहीन एवं कुशाग्रबुद्धि और परिश्रमी छात्रों के लिए प्रेरणाप्रद है।

प्रारम्भ में वे कुछ वर्षों तक स्कूल में अध्यापक रहे। बाद में शिक्षा विभाग में सब-डिप्टी इंस्पेक्टर हो गए। कुछ दिनों बाद असहयोग आन्दोलन से सहानुभूति रखने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और आजीवन साहित्य-सेवा करते रहे। उन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पादन किया। इसके बाद उन्होंने अपना प्रेस खोला तथा ‘हंस’ नामक पत्रिका भी निकाली। सन् 1936 में उनका देहावसान हो गया।

साहित्यिक परिचय

मुंशी प्रेमचंद जी ने लगभग एक दर्जन उपन्यास और तीन सौ कहानियों की रचना की, उन्होंने ‘माधुरी’ और ‘मर्यादा’ नाम की पत्रिकाओं का संपादन किया और ‘हंस’ और ‘जागरण’ नाम के पत्र भी निकाले। उनकी रचनाएँ आदर्शवादी यथार्थवादी हैं, जिनमें सामान्य जीवन की वास्तविकताओं का समुचित चित्रण किया गया है। सामाजिक सुधार और राष्ट्रवाद उनके कार्यों के मुख्य विषय रहे हैं।

रचनाएँ

प्रीगचंद जी के प्रसिद्ध उपन्यास ‘सेवा सदन’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’, ‘गबन’, ‘गोदान’ आदि हैं। उनकी कहानियों का विशाल संग्रह ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में प्रकाशित है। जिसमें लगभग तीन सौ कहानियों का संकलन किया गया है। ‘कर्बला’, ‘संग्राम’ और ‘प्रेम की वेदी’ उनके नाटक हैं। साहित्यिक निबंध ‘कुछ विचार’ नाम से प्रकाशित होते हैं। उनकी कहानियों का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। ‘गोदान’ हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक है।

मुंशी प्रेमचंद जी ने हिन्दी कहानी-साहित्य में युग की प्रस्तुति दी। उनका साहित्य समाज सुधार और राष्ट्रीय भावनाओं से भरा है। वह अपने समय की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों का पूर्ण प्रतिनिधित्व करते हैं। किसानों की दुर्दशा, सामाजिक बंधनों में पीड़ित महिलाओं की पीड़ा और वर्ण व्यवस्था की कठोरता के भीतर पीड़ित हरिजनों की पीड़ा का मार्मिक चित्रण है।

मुंशी प्रेमचंद की सहानुभूति भारत के दलित लोगों, शोषित किसानों, मजदूरों और उपेक्षित महिलाओं के प्रति रही है। उनके साहित्य में कालातीतता के साथ-साथ ऐसे तत्व भी मौजूद हैं, जो इसे शाश्वत और स्थायी बनाते हैं। मुंशी प्रेमचंद जी अपने युग के उन कुशल कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने हिंदी को नए युग की आशाओं और आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का सफल माध्यम बनाया।

भाषा

मुंशी प्रेमचंद जी उर्दू से हिन्दी में आ गए थे; इसलिए उनकी भाषा में उर्दू मुहावरों और मुहावरों का प्रयोग बहुतायत में होता है।

मुंशी प्रेमचंद की भाषा आसान, सरल, व्यावहारिक, धाराप्रवाह, मुहावरेदार और प्रभावी है और इसमें अद्भुत व्यंजना शक्ति भी है। मुंशी प्रेमचंद जी की भाषा पात्रों के अनुसार बदलती रहती है।

मुंशी प्रेमचंद की भाषा में सरलता और वाकपटुता का मेल है। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ ‘बड़े भाई साहब’, ‘नमक का दरोगा’, ‘पूस की रात’ आदि हैं।

शैली

उनकी शैली आकर्षक है। उसमें मार्मिकता है। उनकी रचनाओं में चार प्रकार की शैलियाँ मिलती हैं। वे इस प्रकार हैं – वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, भावनात्मक और आलोचनात्मक। चित्रकारी मुंशी प्रेमचंद की कृतियों की विशेषता है।

‘मंत्र’ मुंशी प्रेमचंद जी की मार्मिक कहानी है। इसमें मुंशी प्रेमचंद जी ने विरोधी घटनाओं, परिस्थितियों और भावनाओं का चित्रण करते हुए कर्तव्य भावना का वांछित प्रभाव पैदा किया है। पाठक मंत्रमुग्ध हो जाता है और पूरी कहानी पढ़ता है। भगत की परस्पर विरोधी मनोदशा, पीड़ा और कर्तव्यनिष्ठा पाठकों के दिलों पर छा जाती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म कब और कहां हुआ था?

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था?

2. प्रेमचंद की माता की मृत्यु के समय उनकी आयु कितनी थी?

प्रेमचंद के माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।”

3. प्रेमचंद की पहली कहानी कौन सी है?

प्रेमचंद‘ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई।

4. प्रेमचंद किस नाम से मशहूर है?

वैसे उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन हिंदी साहित्य में उन्हें मकबूलियत प्रेमचंद नाम से मिली। वैसे उर्दू लेखन के शुरुआती दिनों में उन्होंने अपना नाम नवाब राय भी रखा था।

5. प्रेमचंद की अंतिम कहानी का नाम क्या है?

प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

6. प्रेमचंद का अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र किसने पूरा किया?

जीवन के अंतिम दिनों में प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे और उनका उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ पूरा भी नहीं हो सका। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हुआ। प्रेमचंद के देहांत के बाद ‘मंगलसूत्र’ को उनके पुत्र अमृत ने पूरा किया।

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