गोवर्धन पूजा पर निबंध – नमस्कार दोस्तों कैसे है आप सभी? मैं आशा करता हूँ कि आप सभी अछे ही होंगे. दोस्तों क्या आप गोवर्धन पूजा पर निबंध (Essay on Govardhan Puja in Hindi) लिखना चाहते हैं? यदि हाँ तो आप बिलकुल सही जगह पर आये हैं। इस पोस्ट में हम आपके लिए Short Essay लेकर आये हैं जो की बहुत ही सरल भाषा में लिखे गये हैं। हमें उम्मीद है आपको ये गोवर्धन पूजा पर निबंध पसंद आयेंगे। आप इस निबंध को स्कूल-कॉलेज या प्रतियोगिता आदि में लिख सकते हैं।
गोवर्धन पूजा पर निबंध (250 शब्द)
परिचय
गोवर्धन पूजा एक भारतीय त्योहार है जो दिवाली के बाद मनाया जाता है। यह दिवाली के बाद दूसरे दिन मनाया जाता है। यह ज्यादातर राष्ट्र के उत्तरी हिस्से में मनाया जाता है। इसे अन्नकूट पूजा के साथ-साथ गोवर्धन पूजा के रूप में भी जाना जाता है।
गोवर्धन पूजा कैसे मनाई जाती है?
इस अवसर पर, हर वर्ष लोग इस दिन को बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। देवी अन्नपूर्णा को प्रभावित करने के लिए बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी जल्दी स्नान कर लेते हैं और इस दिन 56 से भी अधिक प्रकार की विभिन्न वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
लोग पवित्र गाय माता की पूजा करते हैं और इस दिन को मनाते हैं। जब गोवर्धन पर्वत को बचाया गया था तो लोगों नें खुशी जताई कि उनके भोजन का स्रोत बच गया है; और श्रद्धांजलि के रूप में, लोग भोजन की देवी यानी माँ अन्नपूर्ण को विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री प्रदान करते हैं।
गोवर्धन पूजा में क्या है खास?
गोवर्धन पूजा हमें बहुत सी चीजें सिखाता है और उसमे सबसे पहली चीज है, हमेशा वही करना जो सही हो और भगवान किसी भी कीमत पर हमेशा आपकी मदद करेंगे।
हमें हमेशा अपने अवसरों का जश्न मनाना चाहिए और यह मान्यता है कि हमें इस दिन खुश होना चाहिए क्योंकि जो लोग त्यौहार के दिन दुखी होंगे वे पूरे वर्ष दुखी रहते हैं, जबकि जो लोग इस दिन खुश रहेंगे, वे पूरे वर्षभर खुश रहते हैं।
निष्कर्ष
सभी भारतीय त्योहार अपने-अपने तरीके से अनूठे हैं, हम इसे एक परिवार की तरह मनाते हैं और अपनी परंपरा को हमेशा अपने नौजवानों तक पहुंचाते हैं। हम सभी इन विशेष अवसरों पर एकजुट होते हैं और पर्व को एक साथ मनाते हैं। हम भोजन साझा करते हैं और अपने नए-नए कपड़े दूसरों को दिखाते हैं। यह सब पूर्ण रूप से जीवन को जीने के बारे में है और उत्सव इसका माध्यम है।
गोवर्धन पूजा पर निबंध (400 शब्द)
परिचय
टीम वर्क को हमेशा सराहा जाता है और यह भारतीयों की खासियत है कि हम अपने त्योहारों को एक साथ मनाते हैं। दूसरे शब्दों में, त्योहार हमें कई तरह से एकजुट करते हैं, और अधिकांश त्योहार हम एक साथ मनाते हैं। उनमें से एक गोवर्धन पूजा है जो हर साल दिवाली के एक दिन बाद मनाई जाती है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
यह त्यौहार देवराज इंद्र पर भगवान कृष्ण की विजय के अवसर पर मनाया जाता है। असल में, यह भगवान विष्णु थे जिन्होंने इस क्रूर दुनिया में कृष्ण के रूप में अवतार लिया। उन्होंने लोगों को राक्षसों से बचाने के लिए जन्म लिया। उन्होंने बीच-बीच में विभिन्न कार्य भी किए और उन सभी का उल्लेख हमारी प्राचीन पुस्तकों में किया गया है।
भगवान कृष्ण ने लोगों से पहाड़ की पूजा करने के लिए कहा जो उन्हें और उनके साथ ही साथ पालतू जानवरों के लिए भी भोजन प्रदान करता है। लोगों ने उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया और गोवर्धन पर्वत की प्रार्थना करने लगे और जब भगवान इंद्र ने इस कृत्य को देखा, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और परिणामस्वरूप, उन्होंने बारिश शुरू कर दी और यह लगातार 7 दिनों तक जारी रहा।
इसी बीच, भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया और वहां के लोगों को आश्रय दिया। परिणामस्वरूप, इंद्र ने अपनी गलती को समझा और पृथ्वी पर आए और भगवान कृष्ण से क्षमा याचना के लिए प्राथना की। 7 दिनों के बाद जब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को पृथ्वी पर रखा, तब लोगों ने इस अवसर को उत्सव के रूप में मनाने की इच्छा जताई। तब से, लोग इस दिन को अन्नकूट के रूप में मनाते हैं, ऐसा इसलिए भी क्योंकि उनको भोजन देने वाला पहाड़ बच गया।
हम इसे कैसे मनाते हैं?
- अलग अलग समूहों में लोग गाय के गोबर से भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियां बनाते हैं क्योंकि यह भारतीय पौराणिक कथाओं में शुद्ध माना जाता है। लोग विभिन्न प्रकार के खाद्यान्नों से भरे बर्तन रखते हैं। वे उस दिन 56 प्रकार के व्यंजन भी पकाते हैं और सबसे पहले अपने भगवान को परोसते हैं।
- इस दिन लोग पवित्र गाय, देवी अन्नपूर्णा और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। यह पर्व मुख्यतः उत्तर भारत में मनाया जाता है लेकिन राष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में लोग इसे अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं।
- एक धारणा यह भी है कि हमें इस दिन हमेशा खुश रहना चाहिए क्योंकि अगर हम इस दिन खुश रहते हैं तो ख़ुशी का यह सिलसिला पूरे साल चलता रहता है इसलिए इस दिन कभी भी दुखी नहीं होना चाहिए।
निष्कर्ष
हमारे त्योहार प्राचीन काल से मनाए जाते रहे हैं और राष्ट्र की समृद्ध पारंपरिक विरासत हमें प्रत्येक अवसर को मनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। वास्तव में, हम एक अद्भुत राष्ट्र में रहते हैं, समृद्ध रंग और उज्जवल संस्कृतियां दुनिया भर के लोगों को हमारी परंपरा सीखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। यह लोगों को आकर्षित करता है और वे हमारे उत्सव का हिस्सा बनना पसंद करते हैं।
गोवर्धन पूजा पर निबंध (850 शब्द)
प्रस्तावना
गोवर्धन हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इस त्यौहार को सभी बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन गोवर्धन पूजा पृथ्वी पर भगवान कृष्ण द्वारा किए गए कृत्य में से एक है। यह कार्य उत्तर प्रदेश के मथुरा के पास किया गया था। इसलिए यह त्यौहार इस क्षेत्र में विशेष रूप से मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा क्या है
हिंदू कैलेंडर के हिसाब से यह बहुत ही शुभ दिन माना गया है और हर वर्ष मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियां बनाते हैं और विभिन्न प्रकार के भोजन और मिठाईयां परोसते हैं। महिलाएं इस दिन पूजा पाठ करते हैं और भजन गाते हैं एवं गायों को भी माला पहनाते हैं। उन पर तिलक लगाती हैं और उनकी पूजा करते हैं। यह अवसर देवराज इंद्र पर भगवान कृष्ण के विजय समारोह के रूप में मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
इस पूजा का बहुत ही अत्यधिक महत्व है। ऐसा बताया जाता है कि गाय भी उसी तरह पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का रूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि देती हैं उसी प्रकार गौमाता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती है।
गोवर्धन की पूजा क्यों करते हैं
हिंदू मान्यता के मुताबिक, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा की थी और इंद्र का अहंकार तोड़ा था। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा करने से इंकार कर दिया था और गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा की विधि
यह पूजा दिवाली के दूसरे दिन की जाती है। इस दिन लोग गोबर से अपने आंगन को साफ करके, उसे लेप करके उस पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर या उसका चित्र बनाकर भगवान गोवर्धन की पूजा करते हैं। इसके पश्चात गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है। पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद के रूप में अन्नकूट का भोग लगाया जाता है, और इसको प्रसाद के तौर पर सभी में वितरित किया जाता है।
गोवर्धन पूजा की कथा
इस पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पहले बृजवासी इंद्र देव की पूजा किया करते थे। जब श्री कृष्ण को यह बात पता चली, तब उन्होंने इंद्र देवता की पूजा करने से इंकार कर दिया और उन्होंने कहा कि इंद्रदेव तो केवल हमें बरसात द्वारा पानी ही देते हैं। हमें गाय के गोबर का संरक्षण करना चाहिए। इससे पर्यावरण भी अच्छा रहेगा और वातावरण भी शुद्ध रहता है। इसका प्रयोग हम हमारी खेती में भी कर सकते हैं।
इसलिए हमें इंद्र कि नहीं गोबर का पर्वत बनाकर गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। परंतु जब यह बात इंद्रदेव को पता लगी तब इंद्र देव श्री कृष्ण जी से और ब्रिज वासियों से नाराज हो गए और उन्होंने भारी बरसात की। सब कुछ तहस-नहस होने लगा तब श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उठाकर सभी देशवासियों को उनके क्रोध से बचाया और इसके बाद उसी समय ब्रिज वासियों ने इंद्र देवता की पूजा को छोड़कर गोवर्धन पूजा की प्रवृत्ति निभाई और यह परंपरा आज भी हमारे भारत देश में विद्यमान है।
गोवर्धन पूजा पर क्या नहीं करना चाहिए
- गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा भूलकर भी बंद कमरे में नहीं करनी चाहिए क्योंकि गोवर्धन पूजा खुले स्थान पर ही की जाती है।
- इस दिन गायों की पूजा करते समय अपने इष्ट देव और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करना बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए।
- गोवर्धन पूजा के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं किए जाते इसलिए भूल कर भी इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए।
- अगर आप गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने जाते हैं तो आप गंदे कपड़े पहनकर परिक्रमा बिल्कुल भी ना करें।
- गोवर्धन पूजा परिवार के सभी लोगों को अलग-अलग नहीं करनी चाहिए बल्कि एक ही जगह पर परिवार के सभी लोगों को गोवर्धन पूजा करनी चाहिए।
- पूजा में परिवार के किसी भी सदस्य को काले या नीले रंग के वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए।
- गोवर्धन पूजा वाले दिन भूलकर भी किसी पेड़ या पौधे को नहीं काटना चाहिए।
अन्नकूट क्या होता है?
गोवर्धन पूजा में अन्नकूट का सबसे अधिक महत्व माना गया है। भक्त भगवान कृष्ण को 56 व्यंजन तैयार करके भोग चढ़ाते हैं। नाथद्वारा और मथुरा में मंदिरों में भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ-साथ अन्य स्थानों पर भी बढ़िया कपड़े और कीमती गहने चढ़ाए जाते हैं। इस दिन दूध से स्नान कराने के बाद मूर्तियों को रेशम और शिफॉन जैसे महीन कपड़ों में लपेटा जाता है। इन वस्त्रों के रंग आमतौर पर लाल, पीले या केसरिया होते हैं क्योंकि इन्हें हिंदू समुदाय द्वारा शुभ माना जाता है। इसमें हीरे, मोती, सोने, और अन्य कीमती धातुओं और पत्थरों के गहने सावधानी से मूर्तियों पर रखे जाते हैं।
गोवर्धन पूजा का नाम गोवर्धन किस प्रकार पड़ा?
दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा को अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है। एक कथा के अनुसार यह पर्व द्वापर युग में आरंभ हुआ था क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के पूजा के निमित्त पके हुए अन्न को भोग में लगाए थे। इसीलिए इस दिन का नाम अंकूट पड़ा।कई जगह इस पर्व को गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
निष्कर्ष
इस त्योहार से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अहंकार कभी भी टूट सकता है। इससे यह सीख भी मिलती है कि हमें पर्यावरण पर भी अधिक महत्व देना चाहिए। द्वापर युग में इस प्रकार गोवर्धन पूजा जोकि कृष्ण द्वारा शुरू की गई थी। उसका पालन हम भारतवासी आज तक निभाते आ रहे हैं और आगे भी निभाएंगे।
अंतिम शब्द
तो दोस्तों आज हमने गोवर्धन पूजा पर निबंध (Essay on Govardhan Puja in Hindi) के बारे में विस्तार से जाना हैं और मैं आशा करता हूँ कि आप सभी को यह लेख पसंद आया होगा और आपके लिए हेल्पफुल भी होगा।
यदि आप को यह पोस्ट पसंद आई है तो इसे अपने सभी दोस्तों के साथ भी जरुर से शेयर करें। आर्टिकल को अंत तक पढने के लीयते आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!
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