परोपकार पर निबंध | Paropkar Par Nibandh

परोपकार पर निबंध – नमस्कार दोस्तों कैसे है आप सभी? मैं आशा करता हु की आप सभी अछे ही होंगे. दोस्तों क्या आप परोपकार पर निबंध (Paropkar Par Nibandh) लिखना चाहते हैं? यदि हाँ तो आप बिलकुल सही जगह पर आये हैं। इस पोस्ट में हम आपके लिए Short Essay लेकर आये हैं जो की बहुत ही सरल भाषा में लिखे गये हैं। हमें उम्मीद है आपको ये परोपकार पर निबंध पसंद आयेंगे। आप इस निबंध को स्कूल-कॉलेज या प्रतियोगिता आदि में लिख सकते हैं।

परोपकार पर निबंध | Paropkar Par Nibandh
परोपकार पर निबंध | Paropkar Par Nibandh

परोपकार पर निबंध (250 शब्द)

परिचय

परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर व्यक्ति को अपनी आदत के रूप में विकसित भी करनी चाहिए। यह एक ऐसी भावना है जिसके तहत एक व्यक्ति यह भूल जाता है की क्या उसका हित है और क्या अहित, वह अपनी चिंता किये बगैर निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और बदले में उसे भले कुछ मिले या न मिले कभी इसकी चर्चा भी नहीं करता।

परोपकार की महत्वता

जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।

निष्कर्ष

पृथ्वी पर सभी प्राणी ईश्वर के अभिन्न अंग है। मनुष्य अपनी भावनाओ को प्रकट कर सकता है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो समाज के सभी जीवो के हित में कार्य कर सकता है। दुनिया से दुःख , गरीबी और दर्द दूर करने के लिए सभी मनुष्य को परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए। मनुष्य का जीवन तभी सफल हो पाता है , जब वह भले काम करता है। इसलिए बच्चो को भी बचपन से भले काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जब बच्चे अपने अभिभावकों को अच्छा कार्य करते हुए देखेंगे , तो वह भी एक अच्छे और परोपकारी इंसान बनेगे।

परोपकार पर निबंध (300 शब्द)

परिचय

परोपकार शब्द ‘पर और उपकार’ शब्दों से मिल कर बना है जिसका अर्थ है दूसरों पर किया जाने वाला उपकार। ऐसा उपकार जिसमें कोई अपना स्वार्थ न हो उसे परोपकार कहते हैं। परोपकार को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है और करुणा, सेवा सब परोपकार के ही पर्यायवाची हैं। जब किसी व्यक्ति के अन्दर करुणा का भाव होता है तो वो परोपकारी भी होता है।

परोपकार का अर्थ

किसी व्यक्ति की सेवा या उसे किसी भी प्रकार के मदद पहुंचाने की क्रिया को परोपकार कहते हैं। यह गर्मी के मौसम में राहगीरों को मुफ्त्त में ठंडा पानी पिलाना भी हो सकता है या किसी गरीब की बेटी के विवाह में अपना योगान देना भी हो सकता है। कुल मिला के हम यह कह सकते हैं की किसी की मदद करना और उस मदद के एवज़ में किसी चीज की मांग न करने को परोपकार कहते हैं। दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो दूसरों की मदद करते हैं और कहीं न कहीं भारत में ये बहुत ज्यादा है।

मनुष्य जीवन का सार्थक अर्थ

कहते हैं की मनुष्य जीवन हमे इस लिये मिलता है ताकि हम दूसरों की मदद कर सकें। हमारा जन्म सार्थक तभी कहलाता है जब हम अपने बुद्धि, विवेक, कमाई या बल की सहायता से दूसरों की मदद करें। जरुरी नहीं की जिसके पास पैसे हो या जो अमीर हो वही केवल दान दे सकता है। एक साधारण व्यक्ति भी किसी की मदद अपने बुद्धि के बल पर कर सकता है। सब समय-समय की बात है, की कब किसकी जरुरत पड़ जाये। अर्थात जब कोई जरुरत मंद हमारे सामने हो तो हमसे जो भी बन पाए हम उसके लिये करें। यह एक जरूरतमंद जानवर भी हो सकता है और मनुष्य भी।

निष्कर्ष

कहते हैं की मनुष्य जीवन तभी सार्थक होता है जब हमारे अंदर परोपकार की भावना होती है। हमें बच्चों को शुरू से यह सिखाना चाहिए और जब वे आपको इसका पालन करता देखेंगे वे खुद भी इसका पालन करेंगे। परोपकारी बनें और दुसरो को भी प्रेरित करें।

परोपकार पर निबंध (400 शब्द)

परिचय

परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर व्यक्ति को अपनी आदत के रूप में विकसित भी करनी चाहिए। यह एक ऐसी भावना है जिसके तहत एक व्यक्ति यह भूल जाता है की क्या उसका हित है और क्या अहित, वह अपनी चिंता किये बगैर निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और बदले में उसे भले कुछ मिले या न मिले कभी इसकी चर्चा भी नहीं करता।

हमारी संस्कृति

हमारी भारतीय संस्कृति इतनी धनि है की यहाँ बच्चे को परोपकार की बातें बचपन से ही सिखाई जाती हैं। अपितु यहाँ कई वंशों से चला आ रहा है, परोपकार की बातें हम अपने बुजुर्गों से सुनते आये है और यही नहीं इससे सम्बंधित कई कहानियां हमारे पौराणिक पुस्तकों में भी लिखे हुए हैं। हम यह गर्व से कह सकते हैं की यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हमारे शास्त्रों में परोपकार के महत्त्व को बड़ी अच्छी तरह दर्शाया गया है। हमे अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिये अर्थात परोपकार को नहीं भूलना चाहिए।

सबसे बड़ा धर्म

आज कल के दौर में सब आगे बढ़ने की होड़ में इस कदर लगे हुए हैं की परोपकार जैसे सबसे पुण्य काम को भूलते चले जा रहे हैं। इंसान मशीनों के जैसे काम करने लगा है और परोपकार, करुणा, उपकार जैसे शब्दों को जैसे भूल सा गया है। चाहे हम कितना भी धन कमा ले परन्तु यदि हमारे अन्दर परोपकार की भावना नहीं है तो सब व्यर्थ है। मनुष्य का इस जीवन में अपना कुछ भी नहीं, वह अपने साथ यदि कुछ लाता है तो वे उसके अच्छे कर्म ही होते हैं। पूजा पाठ इन सब से बढ़ कर यदि कुछ होता है तो वो है परोपकार की भावना और यह कहना गलत नहीं होगा की यह सबसे बड़ा धर्म है।

निष्कर्ष

परोपकार की भावना हम सबके अन्दर होनी चाहिए और हमे अपने अगले पीढ़ी को भी इससे भलीभांति परिचित कराना चाहिए। हमे बच्चों को शुरू से बाटने की आदत लगानी चाहिए। उन्हें सिखाना चाहिए की सदैव जरुरत मंदों की मदद करें और यही जीवन जीने का असली तरीका है। जब समाज में कोई हमारे छोटी सी मदद से एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है तो क्यों न हम इसे अपनी आदत बना लें। और समाज के कल्याण का हिस्सा गर्व से बने। हमारे छोटे-छोटे योगदान से हम जीवन में कई अच्छे काम कर सकते हैं।

परोपकार पर निबंध (600 शब्द)

प्रस्तावना

परोपकार शब्द ‘पर + उपकार‘ दो शब्दों के मेल से बना है। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों की सहयता करना। परोपकार की भावना मानव को इंसान से फरिश्ता बना देती है। यथार्थ में सज्जन दूसरों के हित साधन में अपनी संपूर्ण जिंदगी को समर्पित कर देते है। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं। मन, वचन और कर्म से परोपकार की भावना से कार्य करने वाले व्यक्ति संत की श्रेणी में आते है। ऐसे सत्पुरुष जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों पर उपकार करते है वे देवकोटि के अंतर्गत कहे जा सकते है। परोपकार ऐसा कृत्य है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है।

परोपकार की महत्वता

जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।
गोस्वामी तुलसीदास ने परोपकार के बारे में लिखा है.

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।”

दूसरे शब्दों में, परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है। इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। इस प्रकार यह ईश्वर प्राप्ति का एक सोपान भी है।

भारतीय संस्कृति का मूलाधार: भारतीय संस्कृति की भावना का मूलाधार परोपकार है। दया, प्रेम, अनुराग, करुणा, एवं सहानुभूति आदि के मूल में परोपकार की भावना है। गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है इन महापुरुषों ने इंसान की भलाई के लिए अपने घर परिवार का त्याग कर दिया था।

प्रकृति में परोपकार का भाव: प्रकृति मानव के हित साधन में निरंतर जुटी हुई है। परोपकार के लिए वृक्ष फलते – फूलते हैं, सरिताये प्रवाहित है। सूर्य एवं चंद्रमा प्रकाश लुटाकर मानव के पथ को आलोकित करते है। बादल पानी बरसाकर थे को हरा-भरा बनाते हैं, जो जीव- जंतुओं को राहत देते हैं। प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है- नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है।

परोपकार से लाभ: परोपकारी मानव के हृदय में शांति तथा सुख का निवास है। इससे ह्रदय में उदारता की भावना पनपती है। संतों का हृदय नवनीत के समान होता है। उनमे किसी के प्रति द्वेष तथा ईर्ष्या नहीं होती। परोपकारी स्वम् के विषय में चिंतन ना होकर दूसरों के सुख दुख में भी सहभागी होता है। परोपकार की ह्रदय में कटुता की भावना नहीं होती है। समस्त पृथ्वी ही उनका परिवार होती है। गुरु नानक, शिव, दधीचि, ईसा मसीह, आदि ऐसे महान पुरुष अवतरित हुए जिन्होंने परोपकार के निमित्त अपनी जिंदगी कुर्बान कर दिया।

उपसंहार

परोपकारी मानव किसी बदले की भावना अथवा प्राप्ति की आकांक्षा से किसी के हित में रत नहीं होता, वरन् इंसानियत के नाते दूसरों की भलाई करता है। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया “ के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रतिफल है। परोपकार सहानुभूति का पर्याय है। यह सज्जनों की विभूति होती है। परोपकार आंतरिक सुख का अनुपम साधन है। हमें “स्व” की संकुचित भावना से ऊपर उठा कर “पर” के निमित्त बलिदान करने को प्रेरित करता है।

इस हेतु धरती अपने प्राणों का रस संचित करके हमारी उदर पूर्ति करती है मेघ प्रतुपकार में पृथ्वी से अन्य नहीं मांगते। वे युगो – युगो से धरती के सूखे तथा शुष्क आँगन को जलधारा से हरा भरा तथा वैभव संपन्न बनाते हैं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की हमे परोपकार करने की निम्नलिखित शब्दों में प्रेरणा दे रहे है वो इस प्रकार है।

“यही पशु प्रवृत्ति है कि आप – आप ही चरे।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।”

अंतिम शब्द

तो दोस्तों आज हमने परोपकार पर निबंध (Paropkar Par Nibandh) के बारे में विस्तार से जाना हैं और मैं आशा करता हूँ कि आप सभी को यह लेख पसंद आया होगा और आपके लिए हेल्पफुल भी होगा।

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