Eid 2024 - कब है, क्यों मनाते हैं, और क्या है मनाने के नियम?
By HindiQueries
इस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक बकरीद को ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक ईद उल अजहा का पर्व इस साल 10 जुलाई 2022 को रविवार के दिन मनाया जाएगा।
कब है ईद?
बकरीद को मुस्लिम समाज के लोग त्याग और कुर्बानी के तौर पर मनाते हैं। बकरीद मनाने के पीछे हजरत इब्राहिम के जीवन से जुड़ी एक बड़ी घटना है।
क्यों मनाते हैं बकरीद?
इस्लाम धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हजरत इब्राहिम अल्लाह के पैगंबर थे। वह खुदा में पूरा विश्वास रखते थे।
क्यों मनाते हैं बकरीद?
ऐसा कहा जाता है कि एक बार पैगंबर ने हजरत इब्राहिम से कहा कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें। पैगंबर की बात सुनकर उन्होंने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया।
क्यों मनाते हैं बकरीद?
जैसे ही इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे तभी अल्लाह ने अपने दूत भेजकर बेटे को एक बकरे में बदल दिया। तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाता है।
क्यों मनाते हैं बकरीद?
बकरीद के दिन जिस बकरे की कुर्बानी दी जाती है उसे तीन भागों में बांटा जाता है। जिसका पहला हिस्सा अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लोगो को दिया जाता है।
तीन हिस्सों में बटवारा
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक हर साल दो बार ईद मनाई जाती है। एक ईद उल जुहा और दूसरा ईद उल फितर। ईद उल फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है। इसे रमजान को खत्म करते हुए मनाया जाता है। मीठी ईद के करीब 70 दिनों बाद बकरीद मनाई जाती है।
दो बार मनाते हैं बकरीद
चलिए अब जानते हैं की बकरीद मनाने के कौन - कौन से नियम बनाये गए हैं।
क्या है मनाने के नियम?
कुर्बानी का पहला नियम है कि जिसके पास 613 से 614 ग्राम चांदी हो या इतनी चांदी की कीमत के बराबर धन हो सिर्फ उन्हीं लोगों को कुर्बानी देनी चाहिए।
नियम 01
जो व्यक्ति पहले से ही कर्ज में हो वह कुर्बानी नहीं दे सकता है परन्तु जो व्यक्ति अपनी कमाई में से ढाई फीसदी हिस्सा दान देता हो साथ ही समाज की भलाई के लिए धन के साथ हमेशा आगे रहता हो उसे कुर्बानी देना जरुरी नहीं होती है।
नियम 02
ऐसे पशु जिसे शारीरिक बीमारी हो, सींग या कान का अधिकतर भाग टूटा हो और छोटे पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है।
नियम 03
ईद की नमाज के बाद ही मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है।