इस दिन शिव पूजा के साथ अष्टनागों की पूजा होती है। इसी के साथ नागों की देवी वासुकी की बहन मनसादेवी और उनके पुत्र आस्तिक मुनि की पूजा भी करते हैं। इस दिन नाग माता कद्रू, बलरामजी की पत्नी रेवती, बलरामजी की माता रोहिणी और सर्पो की माता सुरसा की वंदना भी करते हैं।
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इस दिन नाग की बांबी की भी पूजा करते हैं। किसान लोग अपनी नई फसल का तब तक उपयोग नहीं करते जब तक वह नए अनाज से नाग की बांबी को रोट न चढ़ाएं। इस दिन हल चलाना या जुताई कराना मना है।
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इस दिन नागदेव के लिए व्रत भी रखा जाता है। व्रत की शुरुआत चतुर्थी से ही हो जाती है और दूसरे दिन शाम को पारण किया जाता है। पूजा आरती के बाद कथा सुनते हैं और दान आदि देकर व्रत का पारण कर सकते हैं।
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नागपंचमी के दिन घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं और इसकी विधिवत रूप से पूजा करें। इससे जहां आर्थिक लाभ होगा, वहीं घर पर आने वाली काल सर्प दोष से उत्पन्न विपत्तियां भी टल जाएंगी।
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इस दिन चांदी के नाग नागिन की पूजा होती है। चांदी के नाग नागिन न हो तो एक बड़ीसी रस्सी में सात गांठें लगाकर उसे सर्प रूप में पूजते हैं।
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इस दिन किसी नाग मंदिर या स्थान पर जाकर पूजा करने का ज्यादा महत्व है। नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन, कर्कोटक मंदिर उज्जैन, वासुकि नाग मंदिर प्रयागराज, तक्षकेश्वर नाथ प्रयागराज, मन्नारशाला नाग मंदिर, केरल, कर्कोटक नाग मंदिर भीमताल, आदि जगहों के मंदिरों का खास महत्व है।
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नागपंचमी वाले दिन तवा और लोहे की कड़ाही आदि पर भोजन नहीं पकाया जाता है। इस दिन साग काटने की भी मनाई है। भोजन को खास तरह से बनाकर खाते हैं।
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इन दिन मनसादेवी के पुत्र आस्तिक (आस्तीक) की पूजा की जाती है जिसने अपनी माता की कृपा से सर्पों को जनमेयज के यज्ञ से बचाया था।