बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay)

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी? मैं आशा करता हूँ कि आप सभी अच्छे ही होंगे। आज हम आप को बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से बतायेंगे।

बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay)
बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay)

बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay)

नाम (Name)बिहारीलाल चौबे
जन्म (Date of Birth)संवत् 1595 ई.
आयु70 वर्ष
जन्म स्थान (Birth Place)ग्वालियर, मध्यप्रदेश
पिता का नाम (Father Name)केशवराय
माता का नाम (Mother Name)ज्ञात नहीं
कर्म भूमिजयपुर एवं मथुरा
पेशा (Occupation )कवि, लेखक
बच्चे (Children)ज्ञात नहीं
मृत्यु (Death)1663 ईस्वी (लगभग)
मृत्यु स्थान (Death Place)ज्ञात नहीं
काव्य भाषाब्रजभाषा
मुख्य रचनाबिहारी सतसई

प्रारंभिक जीवन

कवि बिहारीलाल का जन्म संवत् 1595 ई.को ग्वालियर में हुआ. जब बिहारी 8 वर्ष के थे तब इनके पिता केशवराय इन्हे ओरछा ले आये तथा उनका बचपन बुंदेलखंड में बीता. यहाँ बिहारी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुरु नरहरिदास से प्राप्त की. इसके बाद युवावस्था में वे मथुरा आ गए और मथुरा में ही उनका ससुराल हुआ।

इन्हें युवावस्था से ही काव्य रचना के रूचि थी. कवि बिहारीलाल ने अपने काव्य की शुरुआत सौंदर्य एवं प्रेम रूपी काव्य से की. मथुरा में रहकर समय के साथ-साथ इनका मन कृष्ण भक्ति में लग गया जिसके परिणामस्वरूप बिहारीलाल ने कृष्ण भक्त के रूप में भक्ति से परिपूर्ण दोहों की रचना की।

बिहारीलाल का काव्य

कवि बिहारीलाल ने दोहो एवं सोरठा से पूर्ण काव्य रचनाएं की. इनकी रचनाओं में सबसे प्रमुख काव्य रचना “सतसई (सप्तशती)” है. यह एक मुक्तक काव्य है एवं इसमें 719 दोहे संकलित हैं।

इसका एक-एक दोहा हिंदी साहित्य का अनमोल रत्न माना जाता रहा. सतसई को तीन मुख्य भागों में विभक्त कर सकते हैं- नीति विषयक, भक्ति और अध्यात्म भावपरक, तथा श्रृंगारपरक. इनमें से श्रृंगारात्मक भाग अधिक है. सतसई के देखने से स्पष्ट होता है कि बिहारी के लिए काव्य में रस और अलंकार का चातुर्य चमत्कार तथा कथन कौशल दोनों ही अनिवार्य और आवश्यक रहे हैं.

बिहारीलाल के काव्य की भाषा-शैली

बिहारी की भाषा साहित्यिक ब्रज भाषा है. इसमें सूरदास की चलती ब्रज भाषा का विकसित रूप मिलता है. इसके साथ ही पूर्वी हिंदी, बुंदेलखंडी, उर्दू, फ़ारसी आदि के शब्द भी उसमें आए हैं. कवि बिहारी का शब्द चयन बड़ा सुंदर और सार्थक है. शब्दों का प्रयोग भावों के अनुकूल ही हुआ है. उन्होंने अपनी भाषा में कहीं-कहीं मुहावरों का भी सुंदर प्रयोग किया है.

विषयो के अनुसार कवि बिहारी की शैली तीन प्रकार की है-

  1. माधुर्य पूर्ण व्यंजना प्रधानशैली – वियोग के दोहों में.
  2. प्रसादगुण से युक्त सरस शैली – भक्ति तथा नीति के दोहों में.
  3. चमत्कार पूर्ण शैली – दर्शन, ज्योतिष, गणित आदि विषयक दोहों में.

बिहारीलाल की पुस्तकें

  • बिहारी सतसई
  • बिहारी के दोहे
  • बिहारी लाल के पचीस दोहे

बिहारीलाल का काव्य

  • माहि सरोवर सौरभ लै
  • है यह आजु बसन्त समौ
  • बौरसरी मधुपान छक्यौ
  • जाके लिए घर आई घिघाय
  • खेलत फाग दुहूँ तिय कौ
  • नील पर कटि तट
  • जानत नहिं लगि मैं
  • वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ
  • गाहि सरोवर सौरभ लै
  • बिरहानल दाह दहै तन ताप
  • सौंह कियें ढरकौहे से नैन
  • केसरि से बरन सुबरन
  • रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ
  • हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ
  • उड़ि गुलाल घूँघर भई
  • मैं अपनौ मनभावन लीनों
  • पावस रितु बृन्दावन की

कवि बिहारीलाल की प्रसिद्ध काव्य ‘पावस रितु वृंदावन की‘ के कुछ दोहे

पावस रितु बृन्दावन की दुति दिन-दिन दूनी दरसै है.
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है॥1॥

हरिया तरवर सरवर भरिया जमुना नीर कलोलै है.
मन मोलै है, बागों में मोर सुहावणो बोलै है॥2॥

आभा माहीं बिजली चमकै जलधर गहरो गाजै है.
रितु राजै है, स्याम की सुंदर मुरली बाजै है॥3॥

(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारी जी री चूनर सारी है.
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है॥4॥

कवि बिहारीलाल की मृत्यु

महाकवि बिहारीलाल ने अपनी काव्य रचनाओ से हिन्दी साहित्य में अमूल्य योगदान दिया है. उनके द्वारा रचित ‘सतसई’ काव्य ग्रंथ ने उन्हें साहित्य में अमर कर दिया. महाकवि बिहारीलाल की मृत्यु 1663 ईस्वी के लगभग मानी जाती है.

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अंतिम शब्द

तो दोस्तों आज हमने बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार से जाना हैं और मैं आशा करता हूँ कि आप को यह पोस्ट पसंद आया होगा और आप के लिए हेल्पफुल भी होगा।

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