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नमस्कार दोस्तों! आज मैं आपके लिए गुरु और शिष्य की कहानी (Guru Shishya Story In Hindi) लेकर आया हूँ, जिसमे आप देखेंगे की कैसे एक शिष्य ने अपने गुरु के अपमान का बदला लिया।
चलिए कहानी शुरू करते हैं।
गुरु और शिष्य की कहानी | Guru Shishya Story In Hindi
यमुनाचार्य वैष्णवपंथ के आचार्य थे। उनके गुरू का नाम भाष्याचार्य था। उन दिनों राजा पांडु के राज्य में ‘कोलाहल’ नामक पंडित रहता था। उसकी एक शर्त थी कि वह शास्त्रार्थ में हारने वाले पंडित से प्रतिवर्ष कर लेता था।
एक दिन यमुनाचार्य के गुरू भाष्याचार्य से उसका शास्त्रार्थ हो गया। इस शास्त्रार्थ में भाष्याचार्य की हार हो गई। शर्त के अनुसार वह कोलाहल को प्रतिवर्ष कर देते रहे, लेकिन उन्होंने अपने शिष्य को पराजय के बारे में कुछ नहीं बताया।
कुछ वर्षों तक तो भाष्याचार्य शर्त के अनुसार कर देते रहे, लेकिन विशेष संकट के कारण कई वर्षों तक कर नहीं दे पाए। कुछ दिनों बाद कोलाहल का सेवक उनसे कर लेने आया। भाष्याचार्य को न पाकर उसने यमुनाचार्य से बकाया धन देने को कहा।
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यमुनाचार्य को इस विषय में कुछ मालूम न था। उन्होंने सेवक से पूछा-“कैसा कर? मेरे आचार्य तो किसी को कर नहीं देते हैं। तुम्हें यहाँ किसने भेजा?” सेवक ने क्रोधित होकर कहा- “जान-बूझकर अनजान बनते हो? क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा गुरू कोलाहल से शास्त्रार्थ में हार गया? कई वर्षों तक उन्होंने कर नहीं दिया।”
उस समय यमुनाचार्य की आयु 14 वर्ष की थी। वह अपने गुरू का अपमान सहन नहीं रह सका। उसने उत्तर दिया- “यदि तुम्हारे राज पंडित को इतना ही घमंड है, तो मैं उन्हें शास्त्रार्थ करने के लिए चुनौती देत हूँ। उनसे जाकर कह दो कि पहले भाष्याचार्य के शिष्य को पराजित करें, तब कर लेने की हिम्मत रखें।”
सेवक के कहने पर कोलाहल ‘आग बबूला हो गया’, क्योंकि जिस कोलाहल के नाम से बड़े-बड़े विद्वान काँपते थे उसे एक साधारण बालक चुनौती दे, ऐसा कैसे हो सकता था।
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उसने पांडु राजा से कहा- महाराज! उस दुष्ट बालक को शीघ्र बुलवाइए।” रजा ने दूत भेज दिया। दूत ने यमुनाचार्य से राजदरबार में चलने के लिए कहा। राजा ने रथ भेजकर उन्हें बुलवाया।
उसी समय भाष्याचार्य बाहर से आ गए। वे रथ देखकर डर गए। उन्होंने समझा कि कोलाहल को कर न देने के कारण ही अधिकारी हमें दंड देने आयें हैं, किंतु दूत द्वारा यमुनाचार्य को दिए गए निमंत्रण को देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।
यमुनाचार्य ने सारी बातें बता दीं। भाष्याचार्य ने उसे बड़ा समझाया, किंतु यमुनाचार्य न माना। भाष्याचार्य से आज्ञा लेकर राजदरबार के लिए चल पड़ा।
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राजा पांडु ने उन्हें ऊँचा आसन दिया। बालक होते हुए भी यमुनाचार्य सबसे अधिक प्रभावशाली दिख रहे थे। उस सभा में रानी भी उपस्थित थीं। वह बालक को देखकर कहने लगीं- “यह साक्षात् विद्या का अवतार है। कोलाहल इसे परास्त नहीं कर सकता।” इस पर राजा ने कहा-“क्या कहती हो रानी? कोलाहल जितने विद्वान तो उसके गुरू भी नहीं हो सकता शास्त्रार्थ प्रारंभ हो गया।
राजा ने रानी से कहा- “यदि तुम्हारी बात सत्य होती है, मैं आधा राज्य इस बालक को दे दूँगा।” राजा उस शास्त्रार्थ के निर्णायक थे। राजा के कहने पर पहले बालक ने प्रश्न किया- “शास्त्रों में कहा गया है कि यह संसार अपार है। भगवान ने एक-से-एक बड़ा पापी और धर्मात्मा संसार से उत्पन्न किया है। कहा जाता है कि पांडु राजा बड़े धर्मात्मा हैं। क्या यह सबसे बड़े धर्मात्मा हैं?”
सुनकर कोलाहल पंडित चुप रहा। अगर सबसे बड़ा धर्मात्मा राजा को बताए तो शास्त्र के विरूद्ध। अगर न बताए तो राजा के अपमान का भी भय। वह कोई उत्तर न दे सका। अंत में राजा ने हाथ उठाकर ‘यमुनाचार्य’ को विजयी घोषित कर दिया। शर्त के अनुसार, उसे आधा राज्य भी दे दिया गया।
अंतिम शब्द
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