नमस्कार दोस्तों! आज मैं आप के लिए लेकर आया हूँ चिड़िया और कौवा की कहानी (Chidiya Aur Kauwa Ki Kahani), जिसे पढ़ कर आप को जरुर से आनंद आएगा और कुछ नया सिखने को भी मिलगे।
तो चलिए शुरू करते हैं।
चिड़िया और कौवा की कहानी (Chidiya Aur Kauwa Ki Kahani)
एक समय की बात है। एक जंगल में एक पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसला था। उसमें एक छोटी सी चिड़िया रहती थी। एक दिन एक कौआ कहीं से उड़ता हुआ आया और चिड़िया के घोंसले के पास बैठ गया। उसने चिड़िया से प्यार से बात की और दोनों दोस्त बन गए। उस दिन से कौवा रोज चिड़िया से मिलने आने लगा। दोनों खूब बातें करते थे और एक दूसरे के साथ समय बिताते थे। कभी-कभी वे भोजन की तलाश में एक साथ जाते हैं।
एक दिन कौआ और चिड़िया भोजन की तलाश में निकले। उड़ते-उड़ते वे एक गांव में पहुंचे, जहां एक घर के आंगन में लाल मिर्च चटाई बिछाकर सुखा रहे थे। जब कौए की नजर लाल मिर्च पर पड़ी तो उसने चिड़िया से कहा, “देखो, लाल मिर्च को देखो।” दोनों चटाई के पास उतर कर बैठ गए।
चिड़िया ने कहा, “चलो एक प्रतियोगिता करते हैं। देखते हैं कौन अधिक लाल मिर्च खा सकता है।” कौआ मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया और बोला, “ठीक है! लेकिन जो जीतेगा वह दूसरे को खा जाएगा।” चिड़िया ने सोचा कि कौवा मजाक कर रहा है। तो वह तैयार हो गई।
दोनों लाल मिर्च खाने लगे। चिड़िया ईमानदारी की इस होड़ में थी तो ईमानदारी से मिर्च खा रही थी। लेकिन कौआ चिड़िया पर नजर रखकर बेईमानी करने लगा। वह कुछ मिर्च खा लेता, लेकिन कुछ चटाई के नीचे छिपा देता। इस बेईमानी के कारण कौआ जीत गया। जीत की खुशी में वह चिल्लाया, “मैं जीत गया। मैं जीता। अब मैं तुम्हें खाऊंगा।”
कौवे की बात सुनकर चिड़िया बहुत उदास हो गई। वह कौए को अपना मित्र मानती थी। लेकिन कौवे ने अपना असली रंग दिखा दिया था। कौआ चिड़िया को खाने के लिए उतावला होने लगा, तब चिड़िया बोली, “ठीक है, तुम मुझे खा सकते हो। लेकिन आओ मुझे खाने से पहले अपनी चोंच धो लो। पता नहीं तुम क्या खाते हो और तुम्हारी चोंच बहुत गन्दी हुआ करती थी।”
कौआ चिड़िया की बात मान गया और उड़कर नदी किनारे चला गया। जब उसने नदी से पानी माँगा तो नदी ने कहा, “मैं तुम्हें पानी देने को तैयार हूँ। लेकिन पहले एक बर्तन ले आओ। इसमें आपको जितना पानी चाहिए, उतना ही ले जाइए।”
कौआ उड़ता हुआ कुम्हार के पास गया और उससे एक घड़ा बनाने को कहा। कुम्हार ने कहा, “मैं तुम्हारे लिए एक बर्तन बनाऊंगा। लेकिन उसके लिए मुझे मिट्टी की जरूरत पड़ेगी। अभी मेरे पास मिट्टी नहीं है। मुझे कुछ मिट्टी लाओ।”
कौआ उड़ता हुआ खेत में पहुंचा और अपनी चोंच से मिट्टी खोदने लगा। तब पृथ्वी ने उससे कहा, “सारी दुनिया जानती है कि तू कूड़ा-करकट और गन्दगी खाता है। इसलिए मैं तुम्हें अपनी चोंच से अपनी मिट्टी पर नहीं मारने दूंगा। इसलिए मिट्टी चाहिए तो कुदाल ले आओ।”
कौआ लोहार के पास गया और उससे कहा, “मुझे कुदाल बना दो।”
लोहार ने कहा, “यदि आप कुदाल चाहते हैं, तो आपको मेरे लिए आग लानी होगी।”
कौआ पास में स्थित एक किसान के घर गया। वहां किसान की पत्नी खाना बना रही थी। कौवे ने उससे कहा, “मुझे आग चाहिए।”
किसान की पत्नी ने चूल्हे में जल रही एक लकड़ी निकाली और कौए की चोंच पर रख दी। आग की लपट अपने पंखों तक पहुँची और कुछ ही समय में कौवा जलकर राख हो गया।
इस प्रकार मित्र को ठगने वाले कौए के प्राण और पक्षी उड़ गए।
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अंतिम शब्द
तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की कभी भी किसी खेल में छल नहीं करना चाहिए क्योंकि छल करने वाला अपने किये का फ़ल अवश्य भुगतता है और छल करने वाला कभी नहीं जीतता और जीतने वाला कभी छल नहीं करता।
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