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नमस्कार दोस्तों, आज हम आप के लिए लेकर आये हैं ब्राह्मण और सर्प की कहानी (Brahman Aur Sanp Ki Kahani), इस कहानी से आप को एक बहुत ही जरुरी बात सिखने को मिलेगी।
अतः इस कहानी को अंत तक पढ़े। चलिए शुरू करते हैं।
ब्राह्मण और सर्प की कहानी | Brahman Aur Sanp Ki Kahani
प्रतापनगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था, जिसका नाम ब्रह्मदत्त था। एक बार वह अपने गाँव से शहर की ओर जाने लगा। उसकी माँ ने उससे कहा- “बेटा, अकेले यात्रा करना ठीक नहीं, जाते समय किसी को साथ अवश्य लेते जाना।”
ब्रह्मदत्त ने कहा-“माँ! डरो मत, मुझे कुछ नहीं होगा। इस समय मै जल्दी में हूँ, साथी को ढूँढने के लिए मेरे पास समय नहीं।”
माँ ने दूसरा उपाय न देखकर पड़ोसी के घर से एक बिच्छू लाकर उसे अपने लड़के को देती हुई बोली- “बेटा, जाना ही है, तो इस बिच्छू को अपने साथ लेकर जाओ। यह मुसीबत में तुम्हारी सहायता करेगा।’
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ब्रह्मदत्त बिच्छू को कपूर की डिबिया में रखकर शहर के लिए चल पड़ा। कुछ दूर जाकर थक गया और वृक्ष के नीचे आराम करने लगा।
उसी वृक्ष के नीचे, बिल में एक सर्प रहता था। वह ब्रह्मदत्त के सामने आकर बैठ गया, उसे कपूर की महक आ गई। कपूर की महक साँप को बहुत पसंद होती है। किसी तरह सर्प ने उस डिबिया को खोल लिया और कपूर खाने लगा। उसमें बैठे बिच्छू ने सर्प के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जिससे वह मर गया और ब्रह्मदत्त बच गया।
कुछ समय पश्चात् जब ब्रहमदत्त की आँखें खुली, उसने अपने पास मरे साँप को पाया। उसे देखकर ब्रह्मदत्त घबरा गया। कपूर की खुली डिबिया तथा बिच्छू को देखकर वह समझ गया कि इस बिच्छू ने ही साँप से मेरी रक्षा की है।
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मन-ही-मन उसने माँ को धन्यवाद दिया और सोचने लगा कि मेरी माँ ने मुझसे ठीक ही कहा था कि अकेले कभी यात्रा नहीं करनी चाहिए। हँसी-खुशी वह शहर की ओर चल दिया।
बच्चों! इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि तुम्हें अपने बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए तथा उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए। यात्रा करते समय कम-से-कम एक साथी को अवश्य साथ रखना चाहिए, जिससे मुसीबत आने पर वह आपका साथ दे सके।
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अंतिम शब्द
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