नमस्कार दोस्तों! आज मैं आप के लिए लेकर आया हूँ बंदर और मगरमच्छ की कहानी (Bandar Aur Magarmach Ki Kahani), जी हाँ यह वही कहानी है जिसे हम सभी ने कभी-न-कभी अपने बचपन में जरुर ही पढ़ा होगा। तो चलिए उसी कहानी का लुफ्त फिर से उठायें, बचपन की यादों को फिर से जगाएं।
तो चलिए शुरू करते हैं।
बंदर और मगरमच्छ की कहानी | Bandar Aur Magarmach Ki Kahani
एक समय की बात है, एक घना जंगल था, जहाँ जानवर आपस में बहुत प्यार से रहते थे। उस जंगल के बीच में एक बहुत ही सुंदर और बड़ा तालाब था। उस तालाब में एक मगरमच्छ रहता था। तालाब के चारों ओर कई फलों के पेड़ थे। उन्हीं पेड़ों में से एक पर एक बंदर रहता था।
बंदर रोज जामुन खाता था और मगरमच्छ बंदर को जामुन खाते हुए देखता था और सोचता था कि काश मैं भी जामुन खा पाता। उसने बंदर से दोस्ती कर ली। अब बन्दर पेड़ के मीठे और स्वादिष्ट फल खाता और अपने मित्र मगर को भी देता। बंदर अपने दोस्त मगर का खास ख्याल रखता था और उसे अपनी पीठ पर बिठाकर पूरे तालाब में घुमाता भी था।
एक दिन बन्दर ने कहा, ये बेर ले जाओ और अपनी पत्नी को भी दे दो।
मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को अपने नए दोस्त बंदर और जामुन के पेड़ के बारे में बताया। साथ ही बंदर के दिए हुए जामुन उसकी पत्नी को दे दिए।
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मगरमच्छ की पत्नी ने जब जामुन खाए तो उसे ये जामुन बहुत मीठे लगे। तभी उसने सोचा कि जो बंदर रोज इतने मीठे जामुन खाता है, उसका मन कितना मीठा होगा। उसने निश्चय किया कि वह उस बन्दर का कलेजा अवश्य खायेगी।
बहुत दिनों के बाद एक बार मगरमच्छ की पत्नी ने कहा कि बंदर हमेशा स्वादिष्ट फल खाता है। जरा सोचिए कि उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा। उसने मगरमच्छ से जिद की कि वह बंदर का कलेजा खाना चाहती है।
मगर ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी और वह मगर से नाराज हो गई। अब मगर को न चाहते हुए भी हाँ कहनी पड़ी। उसने कहा कि वह अगले दिन बंदर को अपनी गुफा में लाएगा, फिर उसका कलेजा निकालकर खाएगा। इसके बाद मगर की पत्नी मान गई।
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बंदर हर दिन की तरह स्वादिष्ट फलों के साथ मगरमच्छ का इंतजार कर रहा था। थोड़ी देर में मगरमच्छ भी आ गया और दोनों ने मिलकर फल खाया। मगरमच्छ ने कहा कि यार आज तुम्हारी भाभी तुमसे मिलना चाहती है। चलो आज वहाँ चलते हैं, तालाब के उस पार मेरा घर है।
बंदर जल्दी से मान गया और उछलकर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया। लेकिन उसे लेकर अपनी गुफा की ओर बढ़ने लगे। दोनों जैसे ही तालाब के बीच पहुंचे मगर ने कहा कि यार आज तेरी भाभी तेरा कलेजा खाना चाहती है। इतना कहकर उसने सारी बात बता दी।
यह सुनकर बंदर सोचने लगा और बोला, “मित्र, तुमने मुझे यह पहले क्यों नहीं बताया?” पर पूछा क्यों दोस्त क्या हुआ। बंदर ने कहा कि मैंने अपना दिल पेड़ पर ही छोड़ दिया है। अगर तुम मुझे वापस ले जाओगे, तो मैं अपना दिल तुम्हारे साथ लाऊंगा।
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लेकिन बंदर की बातों में आ गया और वापस किनारे पर आ गया। दोनों जैसे ही किनारे पर पहुंचे, बंदर तेजी से पेड़ पर चढ़ गया और बोला, अरे मूर्ख, तुम नहीं जानते कि दिल हमारे अंदर है। मैं हमेशा तुम्हारे बारे में अच्छा सोचता था और तुम मुझे खाने वाले थे। यह कैसी दोस्ती है आपकी? सामने से चला जा।
लेकिन उसे अपनी हरकत पर बहुत शर्म आई और उसने बंदर से माफी मांगी, लेकिन अब बंदर उसकी एक न सुनने वाला था।
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अंतिम शब्द
तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की कभी भी संकट के समय हमें घबराना नहीं चाहिए। बल्कि मुसीबत के समय अपनी बुद्धि का उपयोग कर उसे दूर करने का उपाय सोचना चाहिए।
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