धारा 302 क्या है? | Dhara 302 Kya Hai | IPC 302 in Hindi

धारा 302 क्या है? – नमस्कार दोस्तों कैसे है आप सभी? मैं आशा करता हूँ की आप सभी अच्छे ही होंगे। तो दोस्तों आज हम धारा 302 (Dhara 302) के बारे में विस्तार से जानेंगे।

आज के इस आर्टिकल में हम Dhara 302 Kya Hai, 302 IPC In Hindi, धारा 302 की सजा क्या है, धारा 302 में जमानत कैसे मिलती है, धारा 302 का दायरा, किन मामलों में नहीं अप्लाई होती IPC धारा 302, धारा 302 में वकील की ज़रूरत क्यों होती है, धारा 302 और 304 में क्या अंतर है, आदि के अलावा Dhara 302 से सम्बंधित और भी बहुत सारी महत्वपूर्ण बातो के बारे में जानेंगे….

दोस्तों धाराएँ हमारे संविधान को बेहतर बनाने के लिए बनाई गयी है और Dhara 302 भी उन्ही में से एक है पर क्या आप जानते है की आखिर Dhara 302 Kya Hai? अगर नहीं तो चलिए मैं आप को बताता हूँ.

धारा 302 क्या है? | Dhara 302 Kya Hai | IPC 302 in Hindi

IPC की धारा 302 के अनुसार,

जो कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की हत्या करता है तो उसे आजीवन कारावास या मृत्यु दंड और जुर्माना लगा कर दंडित किया जाता है।


हम अक्सर न्यूज चैनल में देखते और अखबार में पढ़ते है कि हत्या के मामले में IPC यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत अदालत में मुजरिम को हत्या के मामले में दोषी पाया गया, और न्यायालय ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

लेकिन फिर भी हम लोगों में से बहुत से लोगों को मालूम ही नहीं की यह धारा 302 होती क्या है, क्या इसका दंड है, कैसे जमानत होती है तो आईए जानते है, इस धारा के बारे में विस्तार से।

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धारा 302 (हत्या के लिए दण्ड) | IPC 302 In Hindi

Dhara 302 In Hindi – भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय दंड संहिता को 1862 में लागू किया गया था। तत्पश्चात, समाज की आवश्यकता के संबंध में, समय – समय पर आई. पी. सी. में संशोधन किए गए। भारतीय दंड संहिता के तहत सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता के बाद किए गए थे। आई. पी. सी. का महत्व इस हद तक था कि पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी इसे आपराधिक शासन के उद्देश्यों के लिए अपनाया था।

इसी तरह, भारतीय दंड संहिता की बुनियादी संरचना, देशों में दंडात्मक कानून, फिर म्यांमार, बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि जैसे ब्रिटिश शासन के तहत भी इसे लागू किया गया।

भारतीय दंड संहिता की धारा 302 कई मायनों में महत्वपूर्ण है। हत्या के आरोपी व्यक्तियों पर इस धारा के तहत ही मुकदमा चलाया जाता है। इसके अलावा, अगर मामले में हत्या के एक आरोपी को अपराध का दोषी माना जाता है, तो धारा 302 में ऐसे अपराधियों को सजा दी जाती है।

इसमें कहा गया है कि जिसने भी हत्या की है, उसे या तो आजीवन कारावास या मृत्युदंड (हत्या की गंभीरता के आधार पर) के साथ–साथ जुर्माने की सजा दी जाएगी। हत्या से संबंधित मामलों में न्यायालय के लिए विचार का प्राथमिक बिंदु अभियुक्त का इरादा और उद्देश्य है। यही कारण है कि यह महत्वपूर्ण है कि अभियुक्त का उद्देश्य और इरादा इस धारा के तहत मामलों में साबित हो।

जब भी धारा 302 का मुकदमा होगा तब जिरह के समय  न्यायालय में हत्या करने वाले व्यक्ति के इरादे को प्रूव किया जायेगा अगर ऐसा सिद्ध हो जाता है कि हत्या करने का इरादा था तब धारा ३०२ के मुताबिक सजा सुनाई जाएगी. लेकिन कुछ मुक़दमे इस तरह के भी होते हैं, जिनमें एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति की हत्या तो की जाती है, लेकिन उसमें मारने वाले व्यक्ति का हत्या करने का इरादा नहीं होता है। तब इस तरह के सभी मामलों में धारा 302 के स्थान पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 का प्रयोग करके इस धारा अर्थात 304 के मुताबिक सजा दी जाएगी।


धारा 302 की सजा क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (IPC 302) के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की मृत्यु करता है तो उसे आजीवन कारावास या मृत्यु दंड और जुर्माना से दंडित किया जाता है। यह एक गैर कानूनी कार्य है। किसी भी मैजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। ऐसे मामलों में जमानत मिलना मुश्किल होता हैं।


धारा 302 में जमानत कैसे मिलती है?

IPC की धारा 302 का अपराध एक प्रकार का बहुत ही गंभीर, संगीन और गैर जमानती अपराध है, इस अपराध के लिए  मृत्यु दंड या आजीवन कारावास तक की सजा के साथ – साथ जुर्माने  का भी प्रावधान किया  गया है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, क्योंकि IPC में कुछ ही अपराध ऐसे हैं, जिनमें मृत्यु दंड जैसी सबसे खरतरनाक़ सजा तक सुनाये जाने का प्रावधान है।


धारा 302 में वकील की ज़रूरत क्यों होती है?

भारतीय दंड संहिता में धारा 302 का अपराध एक बहुत ही संगीन और गैर जमानती अपराध है, जिसमें मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा के साथ – साथ आर्थिक दंड का भी प्रावधान दिया गया है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।

क्योंकि आई. पी. सी. में कुछ ही अपराध ऐसे हैं, जिनमें मृत्यु दंड जैसी सबसे खतरनाक सजा तक सुनाई जाती है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक आपराधिक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है।

जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और हत्या जैसे बड़े मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए।

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धारा 302 और 304 में क्या अंतर है?

धारा 302 के मायने होते हैं, आरोपी खुद हत्या के इरादे से पूरी तैयारी के साथ आए और घटना को अंजाम दे दे। धारा 304 गैरइरादतन हत्या के मायने होते हैं कि आरोपी अचानक किसी घटनाक्रम में उलझे और हत्या कर दे। धारा 304 में भी उम्रकैद का प्रावधान होता है लेकिन आमतौर पर इसमें 5 से 10 साल तक ही सजा होती है।

तो दोस्तों आज हमने धारा 302 क्या है? (What is IPC 302 in Hindi) के बारे में विस्तार से जाना हैं। मैं आशा करता हूँ की आपको यह लेख पसंद आया होगा, यदि हाँ तो इसे अपने सभी दोस्तों के साथ भी जरुर से शेयर करें।

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